Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
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स.१६०, प्रव. जे.७६) पोग्गलकाएहिं सव्वदो लोगो। (स.६४) -दोस पुं [दोष] समस्त दोष । (निय.९३) -धम्म पुं न [धर्मन्] समस्त धर्म, सबधर्म। उवगृहणगो दु सव्वधम्माणं। (स.२३३) -पयडत्त वि [प्रकटत्व] सर्वरूप से प्रकटपना। जिणसमए सव्वपयडत्तं। (निय.२७) -पयत्य पूं [पदार्थ] समस्त पदार्थ। सत्ता सव्वपयत्था। (पंचा.८)-भाव पुं [भाव] सभी भाव। (स.२३२,निय.११९,द.१५,प्रव.शे.१०५,पंचा.९) ण दु कत्ता सव्वभावाणं। (स.८२) -भूद वि [भूत] समस्तप्राणी। इंदियचक्खूणि सव्वभूदाणि। (प्रव.चा.३४) -लोगदरिसि वि [लोकदर्शिन्] समस्त लोक को देखने वाला । (पंचा.१५१, मो.३५) सव्वण्हू सव्वलोगदरिसी। (पंचा.२९) -लोगपदिमहिद वि [लोकपतिमहित] समस्त लोक के अधिपतियों से पूजित। सवण्हू सव्वलोगपदिमहिदो। (प्रव.१६)-विअप्पाभाव वि [विकल्पाभाव समस्त विकल्पों का अभाव सव्वविअप्पाभावे। (निय.१३८)-विरअ वि [विरत] सभी तरह से रहित,पूर्ण विरत।सव्वविरओ वि भावहि। (भा.९७) -संगपरिचत्त वि [सङ्गपरित्यक्त] समस्त परिग्रह से रहित। पव्वज्जा सव्वसंगपरिचत्ता। (बो.२४) -संगमुक्क वि [सङ्गमुक्त सभी परिग्रह से मुक्त। (पंचा.१५८, स.१८८) जो सब्बसंगमुक्को। (पंचा.१५८) -सावज्ज वि [सावद्य] समस्त पापों से युक्त। विरदो सव्वसावज्जे। (निय.१२५) -सिद्ध वि [सिद्ध] सभी सिद्ध। (स.१, दा.१) वंदित्तु सबसिद्धे। (स.१) -हा अ [था] सर्वथा,
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