Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
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-आनाधविजुत्त वि [आबाधवियुक्त सब पीड़ाओं से रहित। सव्वाबाधाविजुत्तो। (प्रव.जे.१०६) -कत्तित वि [कर्तृत्व] सभी प्रकार का कर्तापन। सो मुंचदि सबकत्तितं। (स.९०) -कम्म पुंन [कर्मन्] समस्त कर्म, सकल कर्म।णिज्जरमाणोध सव्वकम्माणि। (पंचा.१५३) -काल पुं [काल] सम्पूर्ण समय, सभी समय। (पंचा.४०, प्रव.जे.४) लोगो सो सम्बकाले दु। (प्रव.जे.३६) -क्खगुणसमिदा वि [अक्षगुणसमृद्ध] समस्त इन्द्रियों के गुणों से सम्पन्न। (प्रव.२२) -क्खसोक्खणाणड्ढ वि [अक्षसुखज्ञानाढ्य] समस्त इन्द्रिय सुख और ज्ञान का भण्डार। (प्रव.जे.१०६) -गद वि [गत सर्वगत, व्यापक। (प्रव.२३,२६,५०) ण खाइयं व सव्वगदं। (प्रव.५०) -णयपक्खरहिद वि [नयपक्षरहित सब नय पक्षों से रहित। सव्वणयपक्खरहिदो। (स.१४४) -णाणदरिसी वि [ज्ञानदर्शिन्] सबको देखने जानने वाला, सर्वज्ञ। (पंचा.२८, स.१६०) सो सव्वणाणदरिसी। (पंचा.२८)-ण्हु पुं [ज्ञ] सर्वज्ञ, परमेश्वर। (प्रव.१६) -त्तो अ [तस्] सब ओर से। (भा.२१) -त्य अ [त्र] सर्वत्र, सभी जगह। (पंचा. १७२,स.३, प्रव.५१, बो.४७,५५) सव्वत्थ अत्यि जीवो। (पंचा.३४) -दंसि वि [दर्शिन्] सर्वदर्शी, सर्वज्ञ। (चा.१) सव्वण्हु सव्वदंसी। (चा.१) -दब्ब पुंन [द्रव्य] सभी द्रव्य,समस्तद्रव्य। (पंचा.१४२, स.२१८, प्रव.२१) सव्वदब्बेसु कम्ममज्झगदो। (स.२१९) -दुक्ख पुं न
दुःख] सभी दुःख। (प्रव.८८,सू.२७,व.१७) ताह णियत्ताई सव्वदुक्खाई। (सू.२७)-दो अ [तस्] सभी ओर से। (पंचा.७३,
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