Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सराग वि [सराग] रागसहित। चरिया हि सरागाणं । (प्रव.चा.४८) -प्पधाण वि [प्रधान] सराग की मुख्यता, सरागमय। सो वि सरागप्पधाणो से। (प्रव.चा.४९) . सरि स्त्री [सरित्] सरिता, नदी। सरिदरितरुवणाई सव्वंतो।
(भा.२१) सरिस/सरिस्स वि [सदृश] समान, तुल्य। णियदेहसरिस्सं
पिच्छिऊण। (मो.९) सरीर पुंन [शरीर] देह, काय, तनु। (स.५०, निय.७०, भा.३७, बो.५१) आहारो य सरीरो। (बो.३३) -ग वि [क] शरीरसम्बन्धी। (निय.७०) काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। (निय.७०) -गुण पुंन [गुण] शरीर के गुण । (स.३९) -गुत्ति स्त्री [गुप्ति] कायगुप्ति। (निय.७०) शरीर सम्बन्धी क्रियाओं को रोकना कायोत्सर्ग या कायगुप्ति है। (निय.७०) -मित्त' [मात्र] शरीप्रमाण, शरीरमात्र। सरीरमित्तो अणाइणिहणो य। (भा.१४७) सलक्खण वि [सलक्षण] लक्षणसहित। छिज्जति सलखेहि णियएहिं। (स.२९५) सलक्खणिय वि [सलक्षणिक लक्षणसहित। (पंचा.१०) सलिल पुं न [सलिल] जल, पानी। (द.७, भा.१२४, १५३)
सम्मत्तसलिलपवहे। (द.७) सल्ल पुं न [शल्य] पीड़ा, दुःख। (निय.८७) -भाव पुं [भाव] शल्यभाव। मोत्तूण सल्लभावं। (निय.८७)
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368