Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 341
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 328 सल्लेहणा स्त्री सल्लेखना] कषाय और शरीर के शमन करने की क्रिया, अनशन व्रत से शरीरत्याग का अनुष्ठान, शिक्षाव्रत का एक भेद। चउत्थ सल्लेहणा अंते। (चा.२६) सव न [शव] मृत शरीर, शव। जीवविमुक्को सवओ। (भा.१४२) सवण देखो समण। (सू.१, द.२७, भा.१०७, मो.१४) सवयाणं सावयाण पुण सुणसु। (मो.८५) -त्तण वि [त्व] श्रमणपना, साधुता। सवणत्तणं ण पत्तो। (भा.४५) सवद वि [सव्रत व्रतसहित। सोच्चासवदं किरियं। (प्रव.चा.७) सवसासत्त वि स्ववशासक्त] स्वाधीन मुनियों में आसक्त। सवसासत्तं तित्यं। (बो.४२) सविसेस वि [स्वविशेष] अपनी विशेषता सहित। सविसेसो जो हि णेव सामण्णे। (प्रव.९१) सविस्सरूव वि [सविश्वरूप] नाना प्रकार के स्वरूपों से युक्त। (पंचा.८) सविहव वि [स्ववैभव] निज वैभव, निजअनुभव। (स.५) दाएहं अप्पणो सविहवेण। सब्ब स [सर्व] सब, समस्त, सम्पूर्ण। (पंचा.८२, स.१५, प्रव.८८, निय.२७, द.१५, सू.१०, बो.२४, मो.१७, भा.१४३, द्वा.१) णाणं अप्पा सव्वं । (स.१०) -अंग पुं न [अङ्ग] समस्त शरीर, शरीर के सभी अवयव। (बो.३७) -अदिचार पुं[अतिचार] सभी अतिचार। (निय.९३) -आगमधर वि [आगमधर] समस्त आगमों का ज्ञाता। सगस्स सब्बागमधरो वि। (पंचा.१६७) For Private and Personal Use Only

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