Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 339
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 326 बो.२,भा.१३३)ते रोया वि सयला। (भा.३८)-काल पुं [काल सभी समय,प्रत्येक समय। (भा.९४)सहदि मुणि सयलकालकाएण।-गुण पुंन [गुण] समस्तगुण । सयलगुणप्पा हवे अत्ता। (निय.५)-जण पुं [जन सभी लोग। सयलजणबोहणत्यं। (बो.२) -जीव पुं [जीव] समस्त जीव। खमेहि तिविहेण सयलजीवाणं। (भा.१०९) -णग्ग विनिग्न]सभी वस्त्र रहित।दव्वेण सयलणग्गा। (भा.६७) -दोसणिम्मुक्क वि [दोषनिर्मुक्त] समस्त दोषों से रहित। (निय.४४) -दोसपरिचत्त वि [दोषपरित्यक्त] समस्त दोषों को छोड़ने वाला। रायादिसु सयलदोसपरिचत्तो। (भा.८५) -परिचत्त वि [परित्यक्त] सभी से रहित। माणकसाएहि सयलपरिचत्तो। (भा.५६) -भाव पुं [भाव] सम्पूर्ण भाव। पुवुत्तसयलभावा। (निय.५०) -संघ पुं [संघ] समस्त संघ। णारयतिरिया य सयलसंघाण। (भा.६७) -समत्य वि [समर्थ] पूर्ण शक्तिमान। खंधं सयलसमत्यं। (पंचा.७५) -सुयणाण न [श्रुतज्ञान] सम्पूर्ण श्रुतुज्ञान। चउदसपुब्वाइं सयलसुयणाणं। (भा.५२) सया देखो सदा। सया विदियवयं होइ तस्सेव। (निय.५७) सयास न [सयास] पास, निकट, समीप। तं गरहि गुरुसयासे। (भा.१०६) सरण पुं न [शरण] 1. आश्रय, स्थान। (मो.१०४,१०५, भा.१२३) तम्हा आदा हु मे सरणं। (मो.१०५) 2. न [स्मरण] स्मृति, याद। (चा.३५) For Private and Personal Use Only

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