Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
333
सहिष/सहिद/सहिय वि [सहित] युक्त, समन्वित, सहित। (पंचा.४२, भा.१४५, द.३४, सू.११) गुणपज्जएहिं सहिदो। (पंचा.२१) सागार वि [सागार] गृहयुक्त, गृहस्थ। (स.४११, प्रव..१०२)
सागारणगारचरियया जुत्तो। (प्रव.चा.७५) साणुकंप वि [सानुकम्प] दयाभावयुक्त, दयाभाव से पूर्ण। जीवो य
साणुकंपो। (प्रव.जे.६५) साद न [सात] सुख, आनन्द। (प्रव.चा.५६) -अप्पग वि [आत्मक] सुखस्वरूप, आनन्दात्मक। भावं सादप्पगं दि। (प्रव.चा.५६) साधिय वि [साधित] सिद्ध किया गया, निष्पादित।
साधियमाराधियं च एयहूँ। (स.३०४) साधीण वि [स्वाधीन] स्वायत्त, स्वतंत्र, स्वाधीन। साधीणो हि विणासो। (स.१४७) साधु पुं [साधु] मुनि, यति। साधूहि इदं भणिदं । (पंचा.१६४) सामग्ग न [सामग्र्य] सामग्री, परिग्रह। सामग्गिंदियरूवं। (द्वा.४) सामण्ण न[श्रामण्य] 1.श्रयणता,साधुपन । (प्रव.९१,निय.१४७)
सो सामण्णं चत्ता। (प्रव.जे. ९८)-गुण पुं न [गुण] श्रमणता के गुण। तेण दु सामण्णगुणं। (निय.१४७) 2. वि [सामान्य] साधारण,सामान्य। (स.१०९) -पच्चय पुं [प्रत्यय] सामान्य प्रत्यय,सामान्य कारण। सामण्णपच्चया खलु। (स.१०९) सामाइय न [सामायिक] संयमविशेष, समभाव, राग-द्वेष का अभाव, शिक्षाव्रत का एक भेद, प्रतिमाओं में तीसरी प्रतिमा।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368