Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
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समिद्धि स्त्री [समृद्धि] वृद्धि, अतिशयवृद्धि। समुग्गद वि [समुद्गत] समुत्पन्न, समुद्भूत। समुट्ठिद वि [समुत्थित सम्यक् प्रयत्नशील, उद्यमी, एक साथ उत्पन्न। (प्रव.७९, प्रव.जे.१०७) तीसु जुगवं समुट्ठिदो जो दु। (प्रव.चा.४२) समुद्द पुं समुद्र] समुद्र, सागर। (सू.२७) -सलिल न [सलिल समुद्र जल, सागर का पानी। समुद्दसलिले अचेलअत्येण। (स.२७) समुद्दिट्ट वि [समुदिष्ट कथित, प्रतिपादित। (निय.११०,१८२) सिद्धा णिव्वाणमिदि समुट्ठिा। (निय.१८२) समुभव पुं [समुद्भव] उत्पन्न, उत्पत्ति, जन्म। (प्रव.७४, निय.३८) परिणामसमुभवाणि विविहाणि । (प्रव.७४) समुवगद वि [समुपगत प्राप्त हुआ, समीप आया। मग्गं जिण
भासिदेण समुवगदो। (पंचा.७०) समूह पुंन [समूह] समुदाय, राशि, समूह। सम्म वि [सम्यञ्च्] 1. सत्य, सच्चा, यथार्थ, समीचीन। सम्मादिट्ठी जीवो। (स.२२८) -दिट्टि/दिहि स्त्री [दृष्टि] सम्यक् दृष्टि। (स.२०२) -इंसण न [दर्शन] सम्यग्दर्शन। (स.१४४, द.३३, चा.१८) सम्यग्दृष्टि जीव अपने आपको ज्ञायक स्वभाव जानता है और तत्त्व के यथार्थ स्वरूप को जानता हुआ, उदयागत रागादिभाव को कर्मविपाक जानकर छोड़ता है। (स.२००) 2. न [साम्य] समता, समानता, निष्पक्षता, सामञ्जस्य। (प्रव.५,
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