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वाचना, पृच्छना, आम्नाय, अनुप्रेक्षा और धर्मोपदेश ये पाँच भेद
भी कहे गये हैं। सट्ठि स्त्री [षष्ठि] साठ, संख्या विशेष| सट्ठी चालीसमेव जाणेह।
(भा.२९) सड वि षट्] छह, संख्या विशेष । छज्जीव सडायदणं णिच्चं।
(भा.१३२) सडण वि [शटन] सड़ना, गिरना, विशरण । (द्वा.४४, भा.२६)
सडणप्पडणसहावं। (भा.२६) सणिधण न [सनिधन] अनादिसान्त। अणादिणिधणो सणिधणो वा
(पंचा.१३०) सण्णा स्त्री [सज्ञा ] चेतना, होश, आसक्ति। (पंचा.१४१, प्रव.जे.४८, निय.६६, भा.११२) सण्णाओ य तिलेस्सा। (पंचा.१४०) आहारसज्ञा, भयसब्ज्ञा और परिग्रह सज्ञा ये चार सज्ञाएँ हैं। सण्णाण न [सद्ज्ञान] सम्यग्ज्ञान। (निय.१२, चा.४२, भा.३१, मो.३८) तत्त्वज्ञान का ग्रहण करना सम्यग्ज्ञान है। तच्चग्गहणं हवइ सण्णाणं। (चा.३८)जीव और अजीव के भेद को जानना सम्यग्ज्ञान है। (चा.४१) संशय,विपर्यय और अनध्यवसाय से रहित ज्ञान सम्यग्ज्ञान है। (निय.५१)हेयोपादेय तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त होना सम्यग्ज्ञान है। (निय.५२)सम्यग्ज्ञान के चार भेद हैं-- मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय। (निय.१२) सण्णाणी वि [सद्ज्ञानी] सम्यग्ज्ञानी। (चा.३९) जो मनुष्य जीवादि
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