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अशुभ लेश्या, अशुभ आत्मा का परिणाम विशेष | मिच्छत्त तह कसाया, असंजम-जोगेहिं असुहलेस्सेहिं। (भा. १७) यहां लेस्सेहि में अकारान्त पुंलिंग एवं नपुंसकलिंग की तरह तृतीया एकवचन में प्रयोग हुआ है। क्योंकि असुह नपुंसकलिंग है, इसलिए नपुंसकलिंग की तरह प्रयोग हुआ है। असुही वि [अशुचि] अशुचि, घृणित, घृणा योग्य। असुहीवीहत्येहि।
(भा. १७) असेव वि [असेव] सेवा करने में अयोग्य, सेवन नहीं करने वाला। सेवंतो वि ण सेवइ असेवमाणो वि सेवगो कोइ।(स.१९७) असेवमाणो (व.कृ.) असेस वि [अशेष] निःशेष, सभी, समस्त। (प्रव. २९, निय.५, भा.
१०८) पावं खवइ असेसं। (भा. १०८) असोहण वि [अशोभन] अशुभ, अप्रशस्त। सोहणमसोहणं वा
कायब्वो विरदिभावो वा। (स. ३१४) असोहि स्त्री [अशोधि] अशुद्धि, अपवित्र। (स. ३०७) गरहासोही
अमयकुंभो। अस्सिद वि [आश्रित] आश्रयप्राप्त। भूयत्थमस्सिदो खलु,
सम्मादिट्ठी हवइ जीवो। (स.११) अह अ [अथ] अब, बाद, अथवा, और। अह सयमेव हि परिणमदि।
(स.११९) अहकं त्रि [अस्मद्] मैं। (स.१९) अहमिदि अहकं च कम्मणोकम्म।
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