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तत्य अ [तत्र वहां, उसमें। सिद्धा चिटुंति किध तत्थ। (पंचा.९२) तदा अ [तदा] तब, उस समय। अप्परिणामी तदा होदि।
(स.१२१) तदिय वि [तृतीय] तीसरा। (भा.११४) तदो अ [ततः] तब,तो,चूंकि। तदो दिवारत्ती। (पंचा.२५) तध/तधाअ [तथा] तथा, और। तध सोक्खं सयमादा। (प्रव.६७) सिद्धो वि तधा णाणं । (प्रव.६८) तम्मअ/तम्मय वि [तन्मय] उसी रूप, उसी प्रकार, तत्पर (स.३४९-३५२, प्रव.८) जम्हा ण तम्मओ तेण। (स.९९) -त्त वि [त्व] उसी पर्यायरूप। (प्रव. जे.२२) तम्मयत्तादो (पं.ए.) पन्चमी एकवचन में दो प्रत्यय होता है और दो प्रत्यय होने पर पूर्व को दीर्घ हो जाता है। तम्हा अ [तस्मात्] इसलिए, इसकारण। (स.२५७, २५८) तम्हा दुमारिदो दे। (स.२५७) तम्हा गुणपज्जया। (प्रव. जे.१२) तय न [त्रय] तीन। (चा.२८) -गुत्ति स्त्री [गुप्ति] तीन गुप्तियां।
मन, वचन, और काय को रोकना गुप्तियां है। तर सक [४] पार होना, तैरना। (पंचा.१७२) भवियो भवसायरं
तरदि। तरण न [तरण] तिरना, पार होना। -हेदुन हेतु पार होने का
कारण। संसारतरणहेदू, धम्मोत्ति जिणेहिं णिद्दिटुं। (भा.८५) तरु पुं [तरु] वृक्ष, पेड़। (भा.२१) -गण [गण] वृक्षसमूह । (भा.८२,लिं.१६) वज्जं जह तरुगणाण गोसीरं। -रहण न
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