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255 (सं.कृ.स.२०३) मोत्तुं (हे.कृ.मो.२७) मोस पुंन [मृषा] झूठ, असत्य। (निय.५७, चा.२४) -भासा स्त्री [भाषा] असत्यवाणी, मिथ्यावचन। (निय.५७) मोसभासपरिणामं। (निय.५७) मोह पुं [मोह] मूढ़ता, अज्ञानता, अज्ञता, आसक्ति। (पंचा.१४८, स.३२, प्रव.७, निय.१७९, भा.१५७, बो.४४, चा.१५, मो.१०) मणुयाणं वड्डए मोहो। (मो.१०) - अंधयार पुं न [अन्धकार] मोहरूपी अन्धकार। (निय.१४५) -उदय पुं [उदय] मोह का उदय। (मो.११) मोहोदएण पुणरवि। (मो.११) -उवचय पुं [उपचय] मोह की वृद्धि। (प्रव.८६) खीयदि मोहोवचयो। (प्रव.८६) -क्खय पुं क्षय] मोह का नाश,मोह का क्षय। सो मोहक्खयं कुणदि। (प्रव.८९) -क्खोह पुं [क्षोभ मोह और क्षोभ। यहां क्षोभ का अर्थ राग-द्वेष है, जिनसे कि जीव क्षुभित-दुःखित होता है। (प्रव.७, भा.८३) मोहक्खोहविहीणो, परिमाणो अपणो हु समो। (प्रव.७) -गंठी पुं स्त्री [ग्रन्थि] मोह की गाँठ। (प्रव.शे.१०३) -जुत्त वि [युक्त] मोह से संयुक्त, मोहासक्त। (स.८९) परिणामा तिण्णि मोहजुत्तस्स । (स.८९) -णिम्ममत्त न निर्ममत्व] मोह से रहित, मोहासक्ति से रहित। (स.३६) जो ऐसा जानता है कि मोह से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है, मैं तो एक उपयोग रूप ही हूं। उसे आगम के जानने वाले मोह से निमर्मत्व कहते हैं। (स.३६) -दिट्ठि स्त्री [दृष्टि] मोहयुक्त दृष्टि, दर्शनमोह। (प्रव.९२) जो णिहदमोहदिट्ठी। -दुग्गंठि पुं स्त्री
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