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। (मो.९३)
261 राग पुं [राग] राग,आसक्ति,प्रेम (पंचा.१६७,स.३७०,प्रव.१४, निय.६, मो.५०) जस्स ण विज्जदि रागो। (पंचा.४६) -प्पजह वि [प्रजह] राग को छोड़ने वाला। (स.२१८) णाणी रागप्पजहो। -रहिद वि [रहित] रागरहित, आसक्ति रहित। (प्रव.शे.८७) मुच्चदि कम्मेहिं रागरहिदप्पा।। राज पुं [राजन्] राजा, नृप, नरेश। (निय.६७) राध पुं [राध] इष्ट, उचित, सिद्ध। (स.३०४) संसिद्धि, सिद्ध, साधित और अपराधित ये राध के एकार्थवाची हैं। (स.३०४) शुद्ध आत्मा की सिद्धि अथवा साधन को राध कहते हैं। राम पुं [राम] बलभद्र, बलदेव। (भा.१६०) चक्कहररामकेसव। राय देखो राज। (स.२२४,२२६) तो सो वि देदि राया। (स.२२४) राय देखो राग। (स.१४७,प्रव.चा.४७,चा.२९,भा.७२,निय.१२० बो.५) रायम्हि य दोसम्हि। (स.२८२) रायम्हि (स.ए.) -करण न [करण] राग की क्रिया, राग का आश्रय। (स.१४८) संसग्गं रायकरणं च। -चरिय न [चरित] राग की चेष्टा, राग का आचारण, राग से सेवित। (प्रव.चा.४७) ण जिंदया रायचरियम्मि। -संगसंजुत्त वि [सङ्गसंयुक्त रागरूप, परिग्रह से युक्त। (भा.७२) जे रायसंगसंजुत्ता। (भा.७२) राय पुं [रात्र] रात्रि, रात। (चा.२२) -भत्त पुंन [भक्त रात्रि,
भोजन, रात्रि में आहार। पोसहसच्चित्तरायभत्ते या (चा.२२) रासि पुंस्त्री [राशि] समूह, ढेर। (भा.२०) हवदि य गिरिसमधिया
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