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178 थुणदि जो, सो तच्चं केवलिं थुणदि। (स.२९) थुणदि (व.प्र.ए.) थुणित्तु (सं.कृ.स.२८) थुणिज्जइ (व. कृ. प्र. ए.मो.१०३) थोस्सामि (भवि. उ.ए.ती.भ.१) थुद वि [स्तुत] पूजित, प्रशंसित, जिसका गुणगान किया गया हो।
केवलिगुणा थुदा होति। (स.३०) थुब्ब सक [स्तु] स्तुति करना, अर्चना करना। थुळते
(व.कृ.स.ए.स.३०) थुव्वंतेहिं (व.कृ.तृ.मो.१०३) थूल वि [स्थूल] मोटा, तगड़ा। (चा.२३,२४, निय.२१)अइथूल-धूल-थूलं। (निय.२१) पर्वत, पत्थर,लकड़ी आदि अतिस्थूल है। घी, तेल, जल आदि स्थूल हैं। धूप, प्रकाश आदि स्थूलसूक्ष्म हैं |शब्द और गन्ध आदि सूक्ष्मस्थूल हैं।इन्द्रिय अग्राह्य स्कन्ध सूक्ष्म हैं तथा परमाणु अतिसूक्ष्म है। इस तरह पुद्गल के छह भेद किये गये हैं। (निय.२२) थेय वि [स्तेय] चोरी, अपहरण। थेयाई अवराहे कुब्वदि।
(स.३०१) थोव वि [स्तोक] अल्प, थोड़ा, स्तोक। थोवो वि महाफलो होइ। (शी.६)
दंडअ ' [दण्डक दण्डक नामविशेष| -णयर न नगर दण्डक नगर। (भा.४९) दंडअणयरं सयलं, डहिओ अअंतरेण दोसेण। (भा.४९) दंत वि [दान्त] वश में किया हुआ, दमन करने वाला।
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