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-विहूण वि [विहीन] दर्शन से रहित। (शी.५) -सुद्ध विशुद्ध] दर्शन से शुद्ध, निर्मल दर्शन वाला। (शी.१२) -सुद्धि वि [शुद्धि] दर्शन की शुद्धि, निर्दोष दर्शन, दर्शनविशुद्धि, सोलह कारण भावनाओं में प्रथम। दंसणसुद्धी य णाणसुद्धीय। (शी.२०) -हीण विं [हीन] दर्शन हीन, दर्शन से रहित। दंसणहीणो ण वंदिव्यो। (द.२) जिस प्रकार स्वच्छ आकाश मण्डल में ताराओं के समूह सहित चन्द्रमा का बिम्ब सुशोभित होता है, उसी प्रकार तप और व्रत से पवित्र दर्शन मय विशुद्ध जिनाकृति शोभित होती है। (भा.१४५) दर्शन गुणरूपी रत्नों में श्रेष्ठ तथा मोक्ष की पहली सीढ़ी है। (द.२१) दट्ठ वि [सृष्ट] देखता हुआ, देखा हुआ। (भा.१५) दट्ठ सक [दृश] देखना, अवलोकन करना। दट्ठ (हे.कृ.द.२४) दठूण (सं.कृ.पंचा.१३०, निय.५९, द.२५) दड वि दिग्ध] जला हुआ। (भा.१२५) दढ वि [दृढ] मजबूत, कठोर। -करणणिमित्त न [करणनिमित्त] मजबूत करने में कारण। (निय.८२) -संजम पुं [संजम] दृढ़संयम। (बो.१८) दत्त वि [दत्त] 1. दिया हुआ। (प्रव.चा.५७) 2. न [दत्त] अचौर्य
(स.२६४) दप्प पुं [दर्प] अहङ्कार, अभिमान, घमण्ड, गर्व। (निय.७३,
भा.१०२) दम पुं दिम] दमन, निग्रह, इन्द्रियजय। (शी.१९) -जुत्त वि
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