________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
231 बद्धा पच्चया बहुवियप्पं । (स.१८०) बल पुं [बल] 1. बलदेव, वासुदेव का बड़ा भाई। (द्वा.५) -देव पुं दिव] बलदेव। 2. न [बल] पराक्रम, शक्ति। मन, वचन, और काय के भेद से बल के तीन भेद हैं। (भा.१५५, पंचा.३०) -पाण पुंन [प्राण] बलप्राण। (प्रव.जे.५४) बलि वि [बलिन्] बलवान् बलिष्ठ, पराक्रमी। (पंचा.११७) बहि अ [बहिस्] बाहर,बाह्य । (निय.३८,प्रव.चा.७३) -तच्च पुन [तत्त्व] बाह्य तत्त्व। (निय.३८) -त्य वि [स्थ] बाह्यरत, बहिर्मुख। (प्रव.चा.७३) बहिर वि [बाह्य] बाहर का,बहिर्भूत। (मो.८,निय.१४९) -त्य वि [स्थ] बाह्यरत । (मो.८)प्प पुं [आत्मन्] बहिरात्मा। समणो सो होदि बहिरप्पा । (निय.१४९) बहु वि [बहु] बहुत, अनेक, प्रभूत, प्रचुर, अनल्प। (पंचा.५६, स.४३, निय.३४, सू.९,भा.१४१,लिं.५)-गुण पुं न [गुण] बहुत, गुण, अनेकगुण, नाना गुण। (द.११) -पयत्त पुं प्रयत्न बहुत प्रयत्न, अधिक उद्यम। (लिं.५) -परियम्म पुंन [परिकर्म] अनेक क्रियायें, बहुत से तपश्चरण सम्बन्धी कार्य। (सू.९) -प्पदेसत्त वि [प्रदेशत्व] बहुप्रदेशीपना। (निय.३४) प्पयार पुं [प्रकार अनेक प्रकार, बहुभेद। (पंचा.११८) -भाव पुं [भाव] अनेक भाव। (स.२३) -माण पुं न [मान] बहुमान, अधिक अहङ्कार। (लिं.६) -माणस वि [मानस] अधिक मानसिक, अनेक प्रकार के मन संबंधी। (भा.१५) -वार पुं [बार] अनेकसमय,
For Private and Personal Use Only