________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
183 (प्रव.जे.२२) -णिग्गंथ वि [निर्ग्रन्थ] बाह्य परिग्रह का त्यागी। (भा.७२) -त्त वि त्व] द्रव्यत्व, द्रव्यपना। (प्रव.८९) -त्यिअ वि [आर्थिक] द्रव्यार्थिक, नयविशेष। (निय.१९) -भाव पुं [भाव] द्रव्य भाव, द्रव्य स्वभाव, द्रव्य की प्रकृति। (स.२०३) -मअ वि [मय] द्रव्यात्मक, द्रव्यमय, द्रव्यस्वरूप। (प्रव.जे.१) -मित्त न [मात्र] द्रव्यमात्र, द्रव्यकर्म की सम्पूर्णता। (भा.४८) ण हु लिंगी होइ दव्वमित्तेण। -लिंग न [लिङ्ग] द्रव्यलिङ्ग, बाह्य चिह्न। (भा.४८) -लिंगि वि [लिङ्गिन्] द्रव्यलिङ्गी, बाह्यवेष धारण करने वाला मुनि। (भा.१३)-विजुत वि [वियुक्त] द्रव्य से रहित। (पंचा.१२)-सण्णा स्त्री [संज्ञा] द्रव्यसंज्ञा, द्रव्यनाम। (पंचा.१०२)-सवण पुं [श्रमण]द्रव्यश्रमण,द्रव्यमुनि, बाह्यवेषधारी मुनि। (भा.३३,१२१)द्रव्य के छह भेद हैं-जीव, पुद्गल,धर्म,अधर्म,आकाश और काल|इन छह द्रव्यों के आधार पर ही विश्व की रचना संभव है। छह द्रव्यों के समूह का नाम विश्व है। विस्तार के लिए पंचास्तिकाय देखे। दरि स्त्री [दरि] गुफा, कन्दरा, घाटी। (भा.२१) दरिसण न [दर्शन] मत, विचारधारा। (स.३५३) दरीसण न [दर्शन] मत,दर्शन। (स.४६)ववहारस्स दरीसण
मुवएसो। दस त्रि [दशन्] दश, संख्या विशेष। (पंचा.७२, भा.३९, बो.३७) दस पाणा। (बो.३७) ट्ठाणग वि [स्थानक] दश प्रकार दशभेद। (पंचा.७२) पृथ्वी,जल,तेज,वायु,प्रत्येक वनस्पति, साधारण
For Private and Personal Use Only