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पणमामि वड्ढमाणं। (प्रव.१) पणमिय (सं. कृ.पंचा.२, प्रव.चा.१) पणिवद सक [प्रणि+पत्] नमन करना, वन्दन करना। (प्रव.चा.६३) पणिवदणीया हि समणेहिं । पणिवदणीया में अणीय प्रत्यय का प्रयोग हुआ है। पण्णत्त वि [प्रज्ञप्त] कथित, उपदिष्ट, निरूपित। (पंचा.१२१,
स.२४८, प्रव.८) कालो णियमेण पण्णत्तो। (पंचा.२३) पण्णय पुं [पन्नग] सर्प, सांप। (स.३१७) ण पण्णया णिव्विसा
हुंति। पण्णसवण न [प्रज्ञश्रवण] प्रज्ञाश्रवण, एक ऋद्धि विशेष ।
(यो.भ.२०) पण्हवायरण न [प्रश्नव्याकरण] प्रश्नव्याकरण, ग्यारहवाँ अङ्ग
आगम। (श्रु.भ.३) पण्णा स्त्री [प्रज्ञा] बुद्धि, ज्ञान, मति। (स.२९४) पण्णाए सो धिप्पए अप्पा। पण्णाए (तृ.ए.स.२९७) पण्णाइ (तृ.ए.स.२९६) पतंग पुं[पतङ्ग] पतङ्ग, चार इन्द्रिय जीव की संज्ञा। (पंचा.११६) पत्त वि [प्राप्त] 1. प्राप्त हुआ। (स.१, ६४) 2. न [पात्र] पात्र,
भाजन। (सू.२१) 3. न [पत्र] पत्ती, पत्ता। (भा.१०३) पत्त सक [प्रति+इ] प्रतीति करना, विश्वास करना। (स.२७५)
पत्तेदि (व.प्र.ए.) पत्तेग न [प्रति+एक प्रत्येक, हर एक। (प्रव.३) पत्तेगं/पत्तेयं अ [प्रत्येकम्] एक-एक करके, एक बार में एक,
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