________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
210
श्रेष्ठ ज्ञाता। (नि.भ.४) -णिव्वाण न [निर्वाण] परमनिर्वाण, परमुक्ति,परमशक्ति। (निय.४)-त्यवि [अर्थ] परमार्थ। (निय.५८,सू.५७,स.८,भा.२,बो.२२)-प्य पुं [पद] परमपद, मोक्षपद। (मो.२)प्पा पुं [आत्मन्] परमात्मा। (निय.७, भा.१५०) -प्पअ/प्पय वि [आत्मक] परमात्मा। (मो.२४,४८) -प्पाण पुं[आत्मन्] परमात्मा। (मो.२)-भत्ति स्त्री [भक्ति] उत्कृष्ट सेवा,उत्तम विनय । (भा.१५२,निय.१३५)-भाग पुं [भाग] सर्वोत्तम स्थान,दूसरा स्थान। (मो.९)-भाव पुं [भाव] उत्कृष्ट भाव,उत्तम भाव। (स.१२,निय.१४६)-सद्धा स्त्री श्रद्धा] परमश्रद्धा,उत्तमश्रद्धान। (चा.४२)-समाहि पुं स्त्री [समाधि] उत्तम समाधि,श्रेष्ठ समताभाव। (निय.१२२,१२३) परमाणुपुं परमाणु] 1. सर्वसूक्ष्म, अणु, समस्त स्कन्धों का अन्तिम भेद। जो नित्य, शब्द रहित, एक अविभागी, मूर्त स्कन्ध से उत्पन्न होता है। जो पृथिवी, जल, वायु, तेज, और वायु का समान कारण है, परिणमनशील है। (पंचा.७७,७८) सव्वेसिं खधाणं, जो अंतो तं वियाण परमाणू। परमाणु एक प्रदेशी है अपदेसो परमाणू। (प्रव.शे.४५) यद्यपि परमाणु एक प्रदेशी है, फिर भी वह स्निग्ध
और रूक्ष गुणों के कारण एक दूसरे परमाणुओं के साथ मिलकर स्कन्ध बन जाता है। (प्रव.जे.७१) 2.अल्प, लघु, अणु। (स.३८) -पमाण पुं [प्रमाण] परमाणु प्रमाण। (प्रव.चा.३९)मित्त न [मात्र] परमाणु मात्र, थोड़ा भी। (स.३८) अण्णं परमाणुमित्तं पि। -मित्तय विमात्रक] परमाणुमात्र,लेशमात्र,कुछ
For Private and Personal Use Only