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[युक्त] दमनयुक्त, इन्द्रियनिग्रह से युक्त। (बो.५१) दया स्त्री [दया] करुणा, दया, अनुकम्पा। (बो.२४, भा.१३२) कुरु दयपरिहरमुणिवर। यहां दय शब्द द्वितीया एकवचन में है। -विसुद्ध वि [विशुद्ध] दया से विशुद्ध,दया से निर्मल |धम्मो दया विसुद्धो। (बो.२४) दव सक [द्रव] प्राप्त होना। (पंचा.९) दवियदि (व.प्र.ए.) दविण पुं न [द्रविण] धन, पैसा, वैभव, सम्पत्ति । (प्रव.जे.१०१)
देहा वा दविणा वा। दविय न [द्रव्यद्रव्य।जो भाव वस्तु के अपने-अपने गुण-पर्यायरूप स्वभाव को प्राप्त होता है तथा एक रूप में ही व्याप्त होता है,वह द्रव्य है। (पंचा.९)द्रव्य के तीन लक्षण दिये गये हैं-दवं सल्लक्खणियं (सत्लक्षण)। उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं (उत्पाद, व्यय और ध्रौव्ययुक्त) |गुणपज्जायसयं (गुण और पर्यायस्वरूप)। (पंचा.१०) समयसार में कहा है-जैसे सोना अपने कंगन आदि पर्याय से अभिन्न एक रूप है वैसे ही द्रव्य अपने गुणों से तथा पर्यायों से अभिन्न है। (स. ३०८) -भाव पुं [भाव] द्रव्यभाव। (पंचा.६) दव्व न [द्रव्य] द्रव्य। (पंचा.८५, स.१०८, प्रव.३६, निय.२६, बो.२७, भा.३३, चा.१८) -उवभोग पुं [उपभोग] द्रव्य कर्म के उपभोग। (स.१९६) -कालसंभूद वि [कालसंभूत] द्रव्यकाल से उत्पन्न। (पंचा.१००) -जादि स्त्री [जाति] द्रव्यसमूह। (प्रव.३७) -ट्ठिअ वि [आर्थिक] द्रव्यार्थिकनय विशेष।
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