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175 तीद पुं [अतीत] अतीत, भूतकाल। (निय.३१) तु अ [तु] किन्तु,तो,उतना,और,ऐसा,कि,तथा,अथवा,या फिर ही पाद पूर्तिक अव्यय। (पंचा. २६, ८६, स.९, ३२, निय.३१) अणण्णभूदं तु सत्तादो। (पंचा.९) सामाइयं तु तिविहं । (निय.१०३) तुम्ह स [युष्मद्] युष्मद्, तुम। युष्मद् शब्द को तुम्ह आदेश हो जाता है। तुम्हं एयं मुणंतस्स। (स.३४१) तुम्हं (च. ष.ए.) तुमं (प्र.ए.स.३७४, भा.४१, मो.३५) तुहं (च/ष.ए.स.२५२,२५५,२५६) तुमे (प्र.ए.भा.२३,२४) पीयं तिहाए पीडिएण तुमे।तुमे यह रूप वैसे द्वितीया एकवचन में बनता है, परन्तु यहां प्रथमा एकवचन में भी इसका प्रयोग हुआ है। (हे.तं तुं तुमं तुवं तुह तुमे तुए अमा३/९२)तुज्झ (च. ष.ए.स.१२१) तुह (स.ए.भा.१९) दे. (च./ष.ए.स.२५९) ते (च. ष.ए.भा.६,६९) ते (तृ.ए. स. २४८, २४९, २५२, २५४) तए (तृ.ए.स.२५१) । तुरिय वि [तुर्य] चतुर्थ,चौथा।तुरियं अबंभविरई। (चा.३०) रूवदपुंन [व्रत] चतुर्थव्रत,चौथा नियम,ब्रम्हचर्यव्रत।जो स्त्रियों के रूप को देखकर उनमें वान्छाभाव नहीं रखता एवं मैथुन संज्ञा के परिणाम से रहित होकर परिणमन करता है, उसी को ब्रह्मचर्यव्रत होता है। (निय.५९) तुस पुं [तुष] धान्य का छिलका, भूसी। (शी.२४) -धम्मंत वि [धमत्] तुष को उड़ा देने वाला,सूप। तुसधम्मंतबलेण। -मास पुं
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