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(निय.५२) दंसणमुक्को य होइ चलसवओ। (भा. १४२) चहुविह वि [चतुर्विध] चार प्रकार। चहुविहकसाए। (निय. ११५) चाअ/चाग/चाय पुं [त्याग] छोड़ना, परित्यक्त। बाहिचाओ
विहलो। (प्रव. चा. २०, भा.३,८१ निय.६५) चाउरंग वि [चतुरङ्ग] चार प्रकार की, चार अवयव वाली। हिंडदि चाउरंग। (मो.६७) छंडंदि चाउरंगं। (मो. ६८) -बल न [बल] चतुरङ्गिणी सेना। (द्वा.१०) चादुर वि [चतुर] चार, संख्या विशेष। -गदि स्त्री [गति] चतुर्गति। हिंडति चादुरगर्दि। (शी.८) वण्ण पुं [वर्ण] चार वर्ण। उवकुणदि जो वि णिच्चं, चादुरव्वण्णस्स समणसंघस्स | (प्रव.चा.४९) चारण पुं [चारण] ऋद्धि, आकाश में गमन करने की शक्ति।
चारणमुणिरिद्धिओ। (भा.१६०) चारित न [चारित्र] चारित्र,आचरण । (पंचा.१६२,स.१६३, प्रव.७ चा.२) -पडिणिबद्ध वि [प्रतिनिबद्ध] चारित्र को रोकने वाला। चारित्तपडिणिबद्धं। (स.१६३) -भर पुं न [भर] भार, बोझ। चारित्तभरं वहंतस्स। (निय६०) चारित्र के दो भेद हैंसम्यक्त्वाचरण चारित्र और संयमाचरण चारित्र। निःशंकित, निःकांक्षित आदि आठ गुणों से युक्त जो यथार्थ ज्ञान का आचरण करता है उसे सम्यक्त्वाचरण चारित्र कहते हैं तथा संयम का आचरण संयमाचरण चारित्र है। जिणणाणदिट्ठी सुद्धं, पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं। विदियं संजमचरणं, जिणणाणसदेसियं तं
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