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(पंचा.७०) -मग्ग पुं [मार्ग] जिनमार्ग, जिनेन्द्रदेव द्वारा प्रतिपादित आगमपथ। तम्हा जिणमग्गादो। (प्रव.९०) जिणमग्गादो (पं.ए.)जिणमग्गे (स.ए.निय.१८५, बो.२) जिण मग्गम्मि (स.ए.लिं.१३) -मद/मय न [मत] जिनमत, जिनसिद्धान्त। जिणमदम्मि (स.ए.प्रव.चा.१२) जिणमयवयणे । (भा.१५९) -मुद्दा स्त्री [मुद्रा जिनमुद्रा, जिनदेव की छवि। (बो.३) दृढ़ता से संयम धारण करना संयममुद्रा, इन्द्रियों को विषयों से विमुख करना इन्द्रिय मुद्रा, कषायों के वशीभूत न होना कषायमुद्रा और ज्ञान स्वरूप में स्थिर होना,ज्ञानमुद्रा है।इस प्रकार जिनमुद्राएं कही गई हैं। (बो.१८) -लिंग न [लिङ्ग] जिनलिङ्ग, जिनदेव द्वारा प्रतिपादित मार्ग का अवलम्बन, सर्वज्ञ प्रणीत मार्ग का अनुसरण | जिणलिंगेण वि पत्तो। (बो.१४, भा.३४, ४९) -वयण न [वचन] जिनवचन, सर्वज्ञवाणी, वीतरागवाणी। (पंचा.६१, भा.११७, सू.१९) -वर पुं [वर] जिनदेव, जिनवर, जिनों में श्रेष्ठ। (पंचा.५४,स.४६,प्रव.४३,निय.८९, भा.१५२, द.१) -वरवसह पुं [वरवृषभ] प्रधान गणधर। (प्रव.चा.१) -वरिंद पुं [वरेन्द्र] सर्वज्ञ । (प्रव.चा.२४,भा.७६,मो.७) -वसह पुं
वृषभ] जिनश्रेष्ठ। (प्रव.२६) -बिंब न [बिम्ब] जिनबिम्ब, जिनदेव का आकार,सर्वज्ञ का प्रतिरूप। (बो.१५)-सत्य पुं न [शास्त्र] जिनागम। जिणसत्थादो अटे। (प्रव.८६) अर्हन्त भगवान् द्वारा कथित, गणधरों के द्वारा अच्छी तरह रचित वचन, जिनागम या जिनशास्त्र है। अरहंतभासियत्थं, गणधरदेवेहिं
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