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निरूपण में आयु को जीव का प्राण माना जाता है। बलमिंदियमाउ उस्सासो। (पंचा.३०, स. २४८, २५२, भा. २५, प्रव. जे. ५४, निय. १७५) आउगपाणेण होति दह पाणा। (बो.३४) आउस्स (ष. ए. निय. १७५) -क्खय पुं [क्षय] आयु का क्षय। (स, २४८, २४९) आउल वि [आकुल] व्याकुल, दुःखित। जे वि के वि दब्बसमणा,
इंदियसुहमाउला ण छिंदंति। (भा. १२१) आउस/आउस्स पुं [आयुष्] आयु। (पंचा.११९) आउसे च ते वि
खलु। (पंचा. ११९) आउह न [आयुध] शस्त्र,हथियार। कुलिसाउहचक्कघरा। (प्रव.७३) आकुंचण न [आकुन्चन] संकोच, पापकर्मों में एक। आकुंचण तह पसारणादीया। (निय.६८) आगंतुअ वि [आगन्तुक] आये हुये। (भा.११) आगद वि [आगत] आया हुआ, उत्पन्न। (प्रव. जे. ८४) पेच्छदि जाणदि आगदं विसयं। (प्रव. जे. ८४) आगम पुं [आगम] शास्त्र, सिद्धांत। (प्रव.जे.६, प्रव.चा.३२)
आगमदो (पं. ए.) इसमें स्वतंत्र रूप से दो प्रत्यय भी होता है। सिद्धं तघ आगमदो। (प्रव.जे.६) -कुसल वि [कुशल] आगमप्रवीण सिद्धान्तप्रवीण, शास्त्र निपुण । परमात्मा से निकले हुए पूर्वापर दोषों से रहित वचन आगम है। तस्स मुहग्गदवयणं, पुवावरदोसविरहियं सुद्धं। आगममिदि परिकहियं, तेण दु
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