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ओगास पुं [अवकाश] जगह, स्थान। अण्णोण्णं पविसंता, दिता
ओगासमण्णमण्णस्स। (पंचा.७) ओगिण्हं सक [अव+ग्रह] लेना, ग्रहण करना, जानना। (प्रव.५५) ओगिण्हित्ता जोग्गं, जाणदि वा तण्ण जाणादि। (प्रव.५५) ओगिण्हित्ता (सं.कृ.) ओग्गह पुं [अवग्रह] इन्द्रियजन्य ज्ञान, सामान्य ज्ञान। (प्रव.२१) अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चार सामान्य इन्द्रिय द्वारा होने वाले ज्ञान हैं। सो णेव ते विजाणदि, ओग्गहपुव्वाहिं किरियाहिं। (प्रव.२१) ओच्छण्ण वि [अवच्छन्न] आच्छादित, ढंका हुआ। (प्रव.८३) खुब्मदि तेणोच्छण्णो, पय्या रागं व दोसं वा। (प्रव.८३) मंसविलित्तं तएण ओच्छण्णं। (द्वा.४३) ओदइय/ओदयिग पुं न [औदयिक] औदयिक भाव, कर्मविपाक। (प्रव.४५) पुण्णफला अरहंता, तेसिं किरिया पुणो हि ओदयिगा। (प्रव.४५) ओदइयभावठाणा। (निय.४१) ओधि पुं स्त्री [अवधि] 1. रूपी पदार्थों का अतीन्द्रिय ज्ञान, अवधिज्ञान। (पंचा.४१) आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि । (पंचा.४१) 2.सीमा, मर्यादा, परिमाण। ओरालिय न [औदारिक औदारिक शरीर विशेष। (प्रव.जे. ७९, बो.३८) औदारिक, वैक्रियिक, तैजस, आहारक और कार्मण ये पांच शरीर पुद्गल द्रव्यात्मक हैं। ओरालिओ य देहो। (प्रव.जे.७९)
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