SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 79 ओगास पुं [अवकाश] जगह, स्थान। अण्णोण्णं पविसंता, दिता ओगासमण्णमण्णस्स। (पंचा.७) ओगिण्हं सक [अव+ग्रह] लेना, ग्रहण करना, जानना। (प्रव.५५) ओगिण्हित्ता जोग्गं, जाणदि वा तण्ण जाणादि। (प्रव.५५) ओगिण्हित्ता (सं.कृ.) ओग्गह पुं [अवग्रह] इन्द्रियजन्य ज्ञान, सामान्य ज्ञान। (प्रव.२१) अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चार सामान्य इन्द्रिय द्वारा होने वाले ज्ञान हैं। सो णेव ते विजाणदि, ओग्गहपुव्वाहिं किरियाहिं। (प्रव.२१) ओच्छण्ण वि [अवच्छन्न] आच्छादित, ढंका हुआ। (प्रव.८३) खुब्मदि तेणोच्छण्णो, पय्या रागं व दोसं वा। (प्रव.८३) मंसविलित्तं तएण ओच्छण्णं। (द्वा.४३) ओदइय/ओदयिग पुं न [औदयिक] औदयिक भाव, कर्मविपाक। (प्रव.४५) पुण्णफला अरहंता, तेसिं किरिया पुणो हि ओदयिगा। (प्रव.४५) ओदइयभावठाणा। (निय.४१) ओधि पुं स्त्री [अवधि] 1. रूपी पदार्थों का अतीन्द्रिय ज्ञान, अवधिज्ञान। (पंचा.४१) आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि । (पंचा.४१) 2.सीमा, मर्यादा, परिमाण। ओरालिय न [औदारिक औदारिक शरीर विशेष। (प्रव.जे. ७९, बो.३८) औदारिक, वैक्रियिक, तैजस, आहारक और कार्मण ये पांच शरीर पुद्गल द्रव्यात्मक हैं। ओरालिओ य देहो। (प्रव.जे.७९) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy