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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 78 एव अ [एव] ही, तरह, समान। जइया स एव संखो। (स.२२२) यहां एव समानता के अर्थ में प्रयोग हुआ है। तस्सेव पज्जाया। (पंचा.११) में ही अर्थ में है। एवं अ [एवम्] इस तरह, तथा, क्योंकि। एवं सदो विणासो। (पंचा.१९) सो आहारओ हवइ एवं। (स.४०५, निय.१०६, चा.६) -विह वि [विध] इस प्रकार, इस विधि से। (स.४३, प्रव.जे.१९) एवंविहा बहुविहा। (स.४३) एसण न [एषण] अन्वेषण, ग्रहण, अचौर्यव्रत की एक भावना, प्राप्ति। (चा.३४) एसणसुद्धिसउत्तं। (चा.३४) -सुद्धि स्त्री [शुद्धि] अन्वेषण शुद्धि, आहारशुद्धि, एक भावना। (चा.३४) एसणा स्त्री [एषणा] एक समिति का नाम, जिसमें निर्दोष आहार आदि क्रियाओं को किया जाता है। (निय.६३) कदकारिदाणुमोदणरहिदं तह पासुगं पसत्थं च । दिण्णं परेण भत्तं, समभुत्ती एसणासमिदी।। (निय.६३) एहिअ/एहिग वि [ऐहिक इस लोक सम्बन्धी, इस जन्म सम्बन्धी। (प्रव.चा.६९) जदि एहिगेहि कम्मेहिं । (प्रव.चा.६९) एहे वि [ईदृक् अपभ्रंश] इसमें, इसके जैसा। एहे गुणगणजुत्तो। (बो.३५) ओ ओगाढ वि [अवगाढ] व्याप्त, भरा हुआ, गहरा। (पंचा.६४) ओगाढगाढणिचिदो, पोग्गलकाएहिं सव्वदो लोगो। (प्रव.जे.७६, पंचा.६४) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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