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उत्तमपत्तं भणियं, सम्मत्तगुणेण संजुः. माहू। (द्वा.१७) -बोहि स्त्री [बोधि] उत्तमबोधि, सद्धर्म का ज्ञान। उत्तमबोहिणिमित्तं (भा.११०) उत्तर वि [उत्तर] श्रेष्ठ, मुख्य। -गुण पुं न [गुण] उत्तरगुण,विशुद्ध भावों से युक्त मुनि के गुण बाहिरसयणत्तावण, तरुमूलाईणि उत्तरगुणाणि। पालिह भावविसुद्धो, पूयालाहं ण ईहंतो।। (भा.११३) उत्तरय वि [उत्तरक] मुख्य, प्रधान। उत्तरयम्मि (स.ए.भा.१४२) उत्तरय में य स्वार्थिक प्रत्यय है। जिसके आने से अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता। सवओ लोयअपुज्जो, लोउत्तरयम्मि चलसवओ। यहां तृतीया के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग हुआ है। उत्तारिय वि [उत्तारिय] पार पहुंचाया हुआ, बाहर निकला हुआ। विसयमयरहरपडिया, भविया उत्तारिया जेहिं। (भा.१५६) उत्तारण वि [उत्तापन] तपाया गया। खणणुत्तावण। (भा.१०) उत्थर सक [उत्+स्तृ] आक्रमण करना, आच्छादन करना।
उत्थरइ (व.प्र.ए.भा.१३) उदा पुं [उदय] अभ्युदय, उत्पत्ति, आविर्भाव, उन्नयन, उत्कर्ष,
वृद्धि। अण्णाणस्स दु उदओ। (स.१३२) उदग पुं न [उदक] जल, पानी। पुढवी य उदगमगणी।
(पंचा.११०) उदधि पुं [उदधि] समुद्र, सागर (शी.२८) । उदय देखो उदअ । उदयादु (पं.ए.प्रव.जे.६१)कम्मेण विणा उदयं।
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