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( ४६ ) ४. सत्तरह संयम से लेकर तेतीस प्रासादन दोष तक । धर्म श्रवण कर श्रेणिक
नरेश का गौतम स्वामी से अपने भवान्तर संबंधी प्रश्न । ५. गौतम स्वामो का उत्तर । विन्ध्य पर्वत पर खदिरसार नामक पुलिन्द । ६. उस पुलिन्द द्वारा समाधिगुप्त मुनि का दर्शन व विनय । धर्मवृद्धि का आशीर्वाद ।
धर्म के स्वरूप का प्रश्न । हिंसा, मांस भोजन व मद्यपान का त्याग
ही धर्म। ७. पुन: असत्य, चोरी, परस्त्री, रात्रि भोजन, पंशुन्य व परवंचन का त्याग ही
धर्म । पुलिंद का प्रश्न - समस्त धर्म पालन में प्रशक्त हो तो क्या करे ? मुनि का उत्तर-देव-गुरु पर श्रद्धा रखकर शक्त्यनुसार धर्म पालन का भी महा
फल । पुलिंद का वायसमांस के त्याग का व्रत ग्रहण । ८. पुलिंद को व्याधि । वैद्य द्वारा काक-मांस खाने का विधान, पुलिंद को
अस्वीकार । पत्नी द्वारा अपने भ्राता सूरवीर का सारसपुर से आनयन । वन
में रोती हुई यक्षिणी से भेंट । ६. वट-यक्षिणी द्वारा प्रात्म-निवेदन । भगिनीपति काकमांस त्याग के फल से उसका
भावी पति, किन्तु उसके व्रतभंग के फल से देवयोनि की प्राप्ति की आशंका से रुदन । व्रत भंग न करने का वचन देकर सूरवीर का भगिनीपति के समीप गमन । काफमांस खाकर व्याधि दूर करने का प्राग्रह, किन्तु पुलिंद द्वारा निषेध । सूरवीर द्वारा यक्षिणी-वृत्तान्त सुनकर पुलिन्द का सब जीवों के मांस का त्याग
व मरकर प्रथम स्वर्ग में दिवाकर नामक देव होना । ११. लौटते हुए सूरवीर द्वारा पुनः यक्षिणी से भेंट । यक्षिणी का पुनः रुदन, क्योंकि
उसी की बात सुनकर सर्वजीवमांस के त्याग से पुलिन्द को उत्तम देव योनि
मिली । सूरवीर का श्रावक धर्म ग्रहण । १२. उसी खदिरसार पुलिन्द का श्रेणिक के रूप में जन्म । श्रेणिक का संक्षेप में जीवन
चरित्र। १३. शेष जीवन चरित्र अभयकुमार के जन्म से लेकर कांचीपुर से निकलने तक । १४. पुनः अभयकुमार के नन्दिग्राम में पहुंचने से चेलना के लाये जाने तक का
संक्षेप वृत्तान्त । १५. चेलना के विवाह से लेकर मुमि की महिमा देखकर श्रेणिक के उपशम भाव तक
का वृत्तान्त । श्रेणिक का गौतम गणधर को प्रणाम, स्तवन, धर्मश्रवण, क्षायिक सम्यक्त्व उत्पादन, सप्तम नरक से काटकर प्रथथ नरक का प्रायुबंध, प्रबल संवेग से भावी तीर्थकरत्व लाभ व महावीर का निर्वाण हो जाने पर तथा चतुर्थ काल के तीन वर्ष आठ मास व पन्द्रह दिन शेष रहने पर मृत्यु की भविष्यवाणी ।
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