Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५३० ] सिरिचंदविरइयउ
[ ५३. २. १२विसन्नमणो अहिमाणवसेण
विणिग्गउ गेहहो तित्थमिसेण । वणंतर देवय का वि निएवि
थियो तहि अग्गा पार पडेवि । पसन्नर ताण वरेण अदीणु
किमो सुइसत्थपुराणपवीण । घत्ता-पणवेप्पिणु पयपंकय देविहे लद्धवरु ।।
पाणंदियमणु मंदिरु आयउ विप्पवरु ॥२॥
अज्झावउ मई निज्जियपरु
अप्परो वि हुउ सव्वहं उप्परु । तं नउ सत्थु जं न सो जाणइ
अहनिसु सीससयहँ वक्खाणइ । हुय पसिद्धि तेत्थु जे आसन्नउ
अत्थि पयडु वरगामु रवन्नउ । बंभणु सुज्जसम्मु तहिँ निवसइ
बंभणि तहो वसुमित्त महासइ । ताण महामइ जयविक्खायउ
वररुइ नामु पुत्तु संजायउ। ५ ।। नमुइविहप्पइसयमहदत्तहिँ
एक्कहिँ वासरे समउ समित्तहिं । तत्थायउ वररुइ जत्थ स्थिउ
पणवेप्पिणु अप्परु अभित्थिउ । तेण वि पडिगाहिय रंजियमण
चत्तारि वि पढंति दियनंदण । वररुइ गुरुदिन्ना पसत्था
एक्कण चेव वियाणए संथग । सो सविसेसं नमुइहे भासइ
नमुइ वि पुणु भेसइहे पयासइ । १० मेसइवयणवसेण चउत्थउ
बुज्झइ इंददत्तु चउसंथउ सयल सत्थवेयत्थवियक्खण
हूया ते कालेण सलक्खण । घत्ता--गोसहासु गुरुदक्खिण मग्गहुँ कुसुमपुरु ।
गय ते नंदनरिंदो पासु नवेवि गुरु ॥३॥
नंदो वि पंचत्तु ता नमुइनामेण दावियविसेसेण परिहरेवि नियकाउ हुउ जणमणाणंदु गुरुकज्जचित्तेहिँ पाविउ ससोवन्नु अन्नहो समप्पेवि
सोवन्नसयसहिय ४. १ सोवन्नु ।
तहि सम संपत्तु । विन्नाणधामेण । परपुरपवेसेण । उढविउ खणे राउ। थिउ रज्जे पुणु नंदु। सोहणे तहिं तेहिँ। गोसहसु समवन्नु। तं विणउ जंपेवि । गुरुदक्षिणा पहिय ।
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