Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 667
________________ ५३२ ] सिरिचंदविरइयउ गय राउलु रायहो विन्नत्तउ सव्वपयत्तें सव्व निहालह पुणु पुणु निउणमई हियाविउ ता सुमरिउ सयडालु महीसें केवलेण कूरेक्कसरावि किंउ पारोयसरीरु महामइ कहइ न पुच्छंतहँ पुवुत्तउ निद्धाडिउ मंतेण निसायरु तुट्ठएण पहुणा पिउ जंपिउ एक्कहिँ दिणे वररुइ पाणंदें ५ तेण वियड्डवग्गु प्राणत्तउ । जो अन्नाइउ सो निक्कालह पर एक्केण वि भेउ न पाविउ । कड्ढाविउ कुवाउ विसेसें। जीविउ सो पर पुत्तपहावें । तेण वियाणिय झगडालुयगइ। बुज्झिउ एहु पिसाउ निरुत्तउ । हुउ सुहि वणि दत्तंतउ सायरु । पुणरवि तहाँ अहियारु समप्पिउ । भणिउ इट्ठगोट्ठी नरिंदें। घत्ता--किउ मइँ चरणु चउत्थउ अच्छइ जणह सुहं । पायत्तउ पहिलारउ चित्तही करहि तुहु ।।६।। एम होउ भासिउ वररुइणा पढिउ पाउ ता पुहईवइणा । तद्यथा-रणं टणं टंटण टंटणेति । प्रायन्नेवि एउ संखेवें विरइउ पायत्तउ भूदेवें । नंदस्य राज्ये मदविह्वलाया हाताच्च्युतः स्वर्ण घटोऽम्बुरिक्तः । सोपानमासाद्य करोति शब्दं रणं टणं टंटण टंटणेति ॥ उत्पलनालकृताभरणा सा त्वं न गतः स्थित सापि निराशा । अद्य कृतं कमलं कमलाक्ष्याः कर्कशनालमकर्कशनालम् ।। अवरु वि एवमाइ मणु देप्पिणु वररुइकयउ कइत्तु सुणेप्पिणु । संसेवि विउसासणहँ रवन्नउ नंदें तासु पसाउ विइन्नउ । अहनिसु समउ तेण रंजियमइ खेलइ पढइ पढावइ भूवइ । अइआसन्न निवि महिपालो हुय रिस तहो केरी सयडालहो । पेक्खह किउ पहु अप्पायत्तउ होइ न भल्लउ एहु निरुत्तउ । इय चितेवि वित्तसंबंधे रोसाविउ पहु तेण पबंधे । सहुँ महएविण वइरिवियारा अत्थि तासु संबंधु भडारा । गुज्झत्थाइँ वि चिण्हइँ जाणइ तेणालेहु सरूवरे आणइ । १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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