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सिरिचंदविरइयउ
गय राउलु रायहो विन्नत्तउ सव्वपयत्तें सव्व निहालह पुणु पुणु निउणमई हियाविउ ता सुमरिउ सयडालु महीसें केवलेण कूरेक्कसरावि किंउ पारोयसरीरु महामइ कहइ न पुच्छंतहँ पुवुत्तउ निद्धाडिउ मंतेण निसायरु तुट्ठएण पहुणा पिउ जंपिउ एक्कहिँ दिणे वररुइ पाणंदें
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तेण वियड्डवग्गु प्राणत्तउ । जो अन्नाइउ सो निक्कालह पर एक्केण वि भेउ न पाविउ । कड्ढाविउ कुवाउ विसेसें। जीविउ सो पर पुत्तपहावें । तेण वियाणिय झगडालुयगइ। बुज्झिउ एहु पिसाउ निरुत्तउ । हुउ सुहि वणि दत्तंतउ सायरु । पुणरवि तहाँ अहियारु समप्पिउ । भणिउ इट्ठगोट्ठी नरिंदें।
घत्ता--किउ मइँ चरणु चउत्थउ अच्छइ जणह सुहं ।
पायत्तउ पहिलारउ चित्तही करहि तुहु ।।६।।
एम होउ भासिउ वररुइणा
पढिउ पाउ ता पुहईवइणा । तद्यथा-रणं टणं टंटण टंटणेति । प्रायन्नेवि एउ संखेवें
विरइउ पायत्तउ भूदेवें । नंदस्य राज्ये मदविह्वलाया हाताच्च्युतः स्वर्ण घटोऽम्बुरिक्तः । सोपानमासाद्य करोति शब्दं रणं टणं टंटण टंटणेति ॥ उत्पलनालकृताभरणा सा त्वं न गतः स्थित सापि निराशा ।
अद्य कृतं कमलं कमलाक्ष्याः कर्कशनालमकर्कशनालम् ।। अवरु वि एवमाइ मणु देप्पिणु
वररुइकयउ कइत्तु सुणेप्पिणु । संसेवि विउसासणहँ रवन्नउ
नंदें तासु पसाउ विइन्नउ । अहनिसु समउ तेण रंजियमइ
खेलइ पढइ पढावइ भूवइ । अइआसन्न निवि महिपालो
हुय रिस तहो केरी सयडालहो । पेक्खह किउ पहु अप्पायत्तउ
होइ न भल्लउ एहु निरुत्तउ । इय चितेवि वित्तसंबंधे
रोसाविउ पहु तेण पबंधे । सहुँ महएविण वइरिवियारा
अत्थि तासु संबंधु भडारा । गुज्झत्थाइँ वि चिण्हइँ जाणइ
तेणालेहु सरूवरे आणइ ।
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