Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५३. १०. ३ ]
कहकोसु धत्ता-सुर्णवि एउ नंदेण न कि पि वियप्पियउ ।
प्रारक्खियहां निसुंभहुँ वररुइ अप्पियउ ॥७॥
तेण वि पुरबहि दूर नेप्पिण
बंभणु गुणि विसिठ्ठ मन्नेप्पिणु । पहउ न घल्लिउ नीसारेप्पिणु
पहउ पयासिउ रायहो एप्पिणु । गामु पलासकूडु जाएप्पिणु
थक्कउ सो वि अलक्खु हवेप्पिणु । एत्तहे तुराएँ मंड करेप्पिणु
निउ निवपुत्तु सुनंदु हरेप्पिणु । तं काणण कुमारु मेल्लेप्पिणु
थिउ निसि नग्गोहम्मि चडेप्पिणु। ५ ता तहिँ वग्घभएणावेप्पिणु
मा वीहहि थिरु थाहि भणेप्पिणु । अच्छहल्लु साहहे वइसे प्पिणु
थिउ तहो नियडर निहुउ हवेप्पिणु । तहो वयणे वीसासहो गंपिणु
सुत्तउ निवसुउ संक मुएप्पिणु । घत्ता--एत्थंतर थिउ पहर अच्छइ रिछु जहिं ।
आगउ अणुमग्गेण जि अलियल्ली वि तहिँ ॥८॥ १०
भणि उ रिछु हउँ मित्त भमंतउ
आहारत्थु एत्थु संपत्तउ । अज्जु न कहिँ मि किं पि मइँ पत्तउ घल्ल हि माणुसु एहु सुयंत्तउ । भर्खवि तुह आसीसउ देंतउ
जामि जेम होएवि सइत्तउ । तेणुत्तउ चउरासमपालहो ।
नंदणु एहु नंदमहिपालहो । महुँ सरणागउ अच्छइ सुत्तउ
घल्लमि भणु किह करमि अजुत्तउ । ५ बोल्लि उ पुल्लिं मित्त म रक्खहि
अज्ज वि मणुयसहाउ न लक्खहि । वरि उवयारु रइउ दोजीहाँ
नउ मणुयहाँ निद्दयहो दुरीहहो । सुज्झइ सरणागउ अप्पतहो
भो इहरत्तु परत्तु ण संतहो । एम भणवि रिछु उवसंतउ
पहरण धरेवि कुमारु पसुत्तउ । घत्ता-सुत्ति तम्मि पंडरिएं बोल्लाविउ कुमरु ।
घिव एयं महु के रउ हणसु छुहापसरु ॥६।।
१०
प्रायन्नेवि कुमारि वत्तउ रक्खिउ एण एत्थु हउँ काणर्ण भणिउ चमूरें तुहुँ उज्जुयमइ
पुल्लि पयंपहि काइँ अजुत्तउ । घल्लमि केम कियंत तवाणणे । न वियाणहि अडइयरहँ परिणइ ।
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