Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 666
________________ ५३१ ५३. ५. १९ ] कहकोसु तं नियवि रुद्रेण दियवरवरिटेण । ते मुक्कमज्जाय सइँ लेवि किं नाय'। इस भर्णवि सावेण चउरो वि हय तेण । नमुइयहाँ कुलटालु मज्जेण विट्टालु। तुडि होसए असुहु वररुइहे बहु असुहु। भेसइहे तणुसोसु इयरहो तिगहदोसु । इय लद्धगुरुसाव ते तत्थ गयगाव । घत्ता--धम्माहम्मवियारणे अहियारम्मि थिया । जोगाणंदे तिन्नि'वि अोलग्गति दिया ॥४॥ जंतें कालें ता सयडालें। रइयपवंचें सामि अमच्चें। पाइउ मज्जं कयं अकज्जं । वारियदुढे तेण वि रुटे। पुत्तकलत्तहिँ सो सहुँ मित्तहिँ। कूवि छुहाविउ प्रावइ पाविउ । तेत्थु जे वणियहो वहु बहुधणियो। जगवइवित्तहो सायरदत्तहो। अत्थि सुहद्दा नाम सुहद्दा । रंजियजणमण अहिणवजोव्वण । एक्कहिँ वासरे ण्हती सा सरे। तडतरुवासें विहियविलासें। भूई दिट्ठी हियइ पइट्ठी। अकविसेसें वणिवरवेसें। बुज्झवि अवसरु आगउ सो घरु । पडिगाहिय सइ सेंधुरवरगइ। ता संपत्तो सायरदत्तो। घत्ता-विहिं वि विवाउ परोप्परु जायउ जणु मिलिउ । को वि न बुज्झहुँ सक्कइ सच्चउ को अलिउ ॥५॥ ४. २ लेवि विनाय । ३ जोगाणंदे नमुचि तिन्नि । १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675