Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 664
________________ संधि ५३ ५ धुवयं-तह सयडालु वि सत्थग्गहणविही मुनो। आराहेवि आराहण सुरवरु सग्गे हुओ ॥ निवसंतनिरंतरनयरगामु दुभिक्खदुक्खदुक्कियविरामु । निरवग्गहु गहचारेण मुक्कु निरुवद्दवु पयसंपय गुरुक्कु । सव्वत्थ वि पवरुज्जाणसोहु नाणाफलपीणियपंथमोहु । सयवत्तहंससोहियसरंतु चंदु व गोधवलियमहिदियंतु । एत्थत्थि पसिद्धउ वच्छदेसु जं पेक्खिवि सग्गु वि करइ वेसु । तहिँ दुग्गमपहय विवक्खमाण परिहापायारविरायमाण । मणिकिरणुज्जोइय हट्टमग्ग पासायसिहरचुंबियनहग्ग । पुरि अस्थि पयड कोसंबि नाम अलया इव पुन्नजणाहिराम । धणवइनिवपालिय बहुविहूइ तहिँ वसइ विउसु बंभणु सुभूइ। तहो तणिय पइव्वय पिय मणोज्ज कविला कविला इव विप्पपुज्ज । घत्ता-अप्परु अवरु उवप्परु वडपारोहभुय । ताहे गब्भे पंकयमुह नंदण विन्नि हुय ॥१॥ १० निरक्खरु जाणइ कि पि न जेठु पहिल्लहो भल्लिय भज्ज सुमित्त कयाइ इमा वरमंदिरलच्छि तहुज्जमणे अइमुक्खु मणेवि अमावसवासरे वन्नि समत्थ तणुच्छउ कालउ वक्खरजुत्तु किवाणु किवाणसुयाउ व वीउ स जेठ्ठ जे बंभणु ताण णवेवि गिहं गउ पाविउ लाहु हसंतु हयास अणायहियाहियकज्ज अयाणो दोसु वि तोसो हेउ २. १ चउत्थिय । २ असोय । ३४ वियाणइ वेय सडंग कणि? । दुइज्जो सुप्पह चारुचरित्त । उवत्थिय' मुक्खवयं धवलच्छि । वियक्खण वल्लह वाय भणेवि । असेय' बइल्ल विहूसण वत्थ । ५ तुरंगमु कालउ कालउ छत्तु । तिलाइउ कालउवन्नु सवीउ । खमाविउ सव्वु वि कालउ देवि । निएवि दुगुंच्छिउ कंतर कंतु । निरक्खर तुज्झ कहिं गय लज्ज । १० सुणेविण भामिणिभासिउ एउ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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