Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 662
________________ ५२. १२. ७ ] कहकोसु [ ५२७ सदेसो ससामंतवग्गो समग्गो तिणा बोहियो जइणधम्मम्मि लग्गो । सभत्ती सव्वत्थ सीयब्भसोहा विसेसेण काराविया चेइगेहा । १० तो सव्वहा बुद्धधम्मम्मि चत्ते हुए पत्थिवे वीयरायस्स भत्ते । स कोवग्गिणा वंदनो पज्जलंतो सया अच्छए तव्वहोवायचित्तो। घत्ता-एक्कहिँ दिर्ण जयसेणु पहु जिणधम्मामयरंगें राविउ । सुमईपुहइपुराहिवेण बुद्धसेणवयणेण भणाविउ ।।१०॥ ११ दुवई-सोहणु बुद्धधम्मु परिहरेवि न तुह जिणधम्मु जुज्जए । काउं मित्त खीरु महुरुज्झवि किं सउवीरु पिज्जए । जइ सुंदर अम्हइँ पडिवज्जहि तो खवणाणउ धम्मु विवज्जहि । केमवि तं नउ तेण समीहिउ गंपिणु पुरिसें समइहे साहिउ । तेण वि रूसेवि भडसहसाहिउ पेसिउ अचलनामु तत्थाइउ । बहुसामग्गिए लद्धविसेसें आवासिउ बहि भम्मह वेसें । तम्मारेवर छिद्द नियंतउ अच्छइ पुरे ववहारु करंतउ । एक्कहिँ दियहे तेण नियपरियणु भणिउ कज्जकरणाणंदियमणु । अत्थि कोइ जो एत्तिउ सारण एहु दुठ्ठ पुहवईवइ मारण। एउ सुणेप्पिणु विक्कमसारें भणिउ भडेण नाम अहिमारें। १० मारमि हउँ थिरु थाहि असंसउ एम भणेप्पिणु परमोवासउ । गउ तहिँ जहिँ अच्छइ परमेसरु जइवइ भव्वंभोरुहनेसरु । घत्ता--धम्मु सुणेप्पिणु तेण मणि धुत्तें विणयपरेण पउत्तउ । दूसहु मज्झु कुडुंबदुहु दिज्जउ पहु तवयरणु निरुत्तउ ।।११।। १२ दुवई--अइपायरु निएवि अवियाणियतप्परिणामवित्तिणा। जइवसहेण तासु तउ दिन्नउ भुवणुच्छलियकित्तिणा ।। तहिँ कइवयवासर जंति जाम अवरण्हे महीवइ पत्त ताम । भावें अंचेवि थुणेवि देउ वंदेवि सूरि संधे समेउ । नियगुज्झु किं पि पुच्छहुँ मुणिंदु एयंते पइट्टउ मढे नरिंदु। नीसारिउ बाहिरे सव्वु को वि अहिमारु परेक्कु अलक्खु होवि। बंधेप्पिणु कमु सीहु व मयासु थिउ थंभंतरे ल्हिक्किवि हयासु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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