Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 661
________________ ५२६ ] सिरिचंदविरइयउ [ ५२. ८. १८नियवि अंगया दुहवसं गया। सो कुदि ट्ठिणा तेण सेट्ठिणा। जोइउं इला आणिग्रो बला। कयरयव्वयं भग्गयं वयं । घत्ता-जेणेक्केण जि सव्वु बलु बलिणा पाराउट्ठउ किज्जइ । मुत्तिहे तं जावं न निउ ताव कि कम्मु पुराइउ खिज्जइ ।।८।। दुवई-अच्छिवि दियह कइवि पुणरवि गउ लग्गउ सवणधम्महो । पेखेवि दुहिय [दुहिय] ससुरेण पुणाणिउ गपि हम्महो ।। पुणु वि उवाउ करेवि सयाणउ अच्छिवि कइवि दिणाइँ पलाणउ । पुणु वि पलोप्रवि दुप्परिणामें प्राणिवि सुयह समप्पिउ मामें । अच्छिवि पुणु वि छलेण पण?उ पुणु वि तेण जोयंते दिउ । प्राणिवि भवणभंतरे छुद्धउ चितइ विसयसुहेसु अलुद्धउ । हउँ पावेण एण संताविउ बहु वाराउ रिसित्तु मुयाविउ । संपइ पुणु वि भंगु तवचरणहो एहु करेसइ दुक्कियहरणहो । तो वरि पाराहण पाराहमि पालमि तउ अप्पाणउ साहमि । इय चितिवि समभावि हवेप्पिणु पालोयण सयमेव करेप्पिणु । १० । भुवणत्तयपहुपय सुमरंतउ सासनिरोहे साहु समत्तउ । घत्ता-कडयम उडकेऊरधरु निरुवमरूवपरज्जियवम्महु । संजायउ सोहम्मे सुरु अट्ठगुणीसरु सूरसमप्पहु ।।९।। दुवई-रिसिरूवेण राण अहिमारे मारिश समयभत्तप्रो । सुहमइ सत्थगहणमरणेण वि सूरि समाहि पत्तो । महंतं महंताहिवासं समिद्धं पुरं अत्थि सावत्थिनामं पसिद्धं । महाविक्कमक्कंतभीमारिसेणो जयाई पयाणं पहू तत्थ सेणो । पिया वीरसेणा सुग्रो वीरसेणो बउद्घो गुरू राइणो बुद्धसेणो। गुणी तस्स तत्थेव संपत्तमाणो सुहेणच्छए भिक्खुसंधै समाणो । कयाइं भमंतो ससंघो समायो जईसो जईसाहिहाणो समाप्रो । निवो तस्स पासम्मि सोऊण सम्म हुप्रो सावप्रो छड्डियं बुद्धधम्म । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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