Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 659
________________ ५२४ ] सव्व सव महम्म अरिदुरियसीहु नयणाहिराम पालिययासु नयवणयजुत्तु हे महं पहारिराज पुरि वीरसेणु तहो तणिय भाम नंद अवरु वि सुरूय के यवहुरीह यो निवेण परिवि सोवि इयदि हिँ सि वारिय कम् मोहपा उवसंतभाउ सिरिiवविरइयउ ७ दुवई - पवि हुयवहसिहा वि सिरछेउ दुसहु परेक्कु नवर नवरंग तारिस ता वत्थ निएप्पिणु छंडाविउ तव केण धरिज्जइ Jain Education International हुमरु मरेवि । कोसलपुरम | पहु धम्मसीहु । चंदसिरि नाम | महवि तासु । पियसेत्तु । दक्खिणजते । कोल्लइरिराउ | सुविसुद्ध । वीरमइ नाम | नामेण चंडु | चंद सिरिधूय । सिरिधम्मसीह | सा दिन्न तेण । नल्लु होवि । वसिकयमणेहिँ । घत्ता -- वल्लहे दिक्ख लएवि गए मुक्कसव्ववावार रुयंती । भिज्जइ प्रहनिसु चंदसिरि दूसहु तव्विप्रोउ प्रसहंती ॥६॥ सहुँ बहुनिहँ । निसुविधम् । दमवरहोपासे । fairs | ७. १ यहा = चिन्ह देकर ऊपर हांसिये में यह पद्य लिखा है [ ५२. ६.७ वि सव्वु सहिज्जए जणे । दइयविप्रोउ जोव्वणे || आणि ताएं सो जोएप्पिणु । जर्ग बलवंतु कम्मु किं किज्जइ । सव्वस उपरि दंडु कउ निग्गहु सिरछेप्रस्सु । हँ विहुँवि समग्गलउ जं वि विछोहु पिस्सु || For Private & Personal Use Only १० १५ २० २५ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675