Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५२२ ] सिरिचंदविरइयउ
[ ५२. २. ६मई सत्तम दिय हे मरिएवउ
कीडएण वच्चहरे हवेवउ। गरुयउ किण्हसीसु जाणेज्जसु
पुत्त पयत्तइँ मइँ मारेज्जसु । १० भीयउ भूवइ एम भणेप्पिणु
थिउ जलगब्भे गेहि पइसेप्पिणु । पडिउ वज्जु सिरि सत्तम वासर मुउ हुउ किमि निवबच्चभंतरे ।
घत्ता-जोयंतेण तणुब्भवेण किमिकुलसंकुलि कहमवि दिट्ठउ ।
जा मारइ किर ता तहिँ जि' कारे विहुरे भएण पइट्ठउ ।।२।।
दुवई-वच्चइ जहिँ जे तहिँ जे रइ बंधइ जीव सकम्मपेरियो ।
एम भणेवि तेण कयकरुणें परिहरिमो न मारियो । उक्तं च यत्र यत्रोपपद्यन्ते जीवाः कर्मवशानुगाः ।
तत्र तत्र रति यान्ति कर्मणा तेन रञ्जिताः ।। तायहो अवत्थ तारिस निएवि
देवरइ राउ संपय मुएवि । निदिवि संसारु अणत्थकारि
हुउ अवरु वि जणु जिणमग्गचारि । बलि किज्जउ खलु संसारवासु
देउ वि जहिँ सेवइ गब्भवासु । इह परभवे वि विप्पिउ कुणंति
बंधू वि वइरि पुरिसहो हवंति । इह परभवे वि माया वि मांसु
भक्खइ नियडिभो जणइ नासु । एत्थत्थि सुकोसलसामिचरिउ
पयडिज्जइ लोयहां पहयदुरिउ । १० भवे परिभमेवि संबंधु लेइ
सत्तु वि पुणु मित्तत्तणु मुएइ । भइणी वि भज्ज जणियाणुराय
भज्जा वि होइ संसारे माय । घत्ता-विमलाहेउ विसन्नमणु वंकें वंकसहावें मारिउ ।
पेच्छह हुउ नियपणइणिहे गब्भे सुदिट्ठि सुकम्में पेरिउ ॥३॥
दुवई-उर्जणिहि सुदिट्ठि पयपालो पुहईवइहे होतो ।
कंचणयारु चारुविन्नाणे रंजियलोयचित्तो ।। विमला पिय तहो सीसेण सहिय
अच्छइ खल कुलमज्जायरहिय। . जाणंतु वि कंतु न कि पि भणइ
मणि कज्जु वियाणेवि मोणु करइ । पभणइ पइ कि पि न जेम जेम
हुय धिट्ठि निरारिउ तेम तेम। ५ २. १ जो।
३. १ विसमत्तमणु।
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