Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४६. ४. १२ ] '
कहकी
घत्ता - थि पिययमे पुत्तत्थिणि जयवइ एक्कदिने । अहि अच्चती एक्कें मुणिणा दिट्ठ वणे ||२||
जावि भणिय किं अहु हरंति जिणधम्मु मुवि न अन्नु देइ तेज्झहि' लोइयधम्मु देउ कि बहुणायन्नहि कहमि गुज्भु अवतारु लएसइ सत्तमम्मि होइ उ सावि गुणनिकेउ हरिसिय निसुणेष्पिण पुत्तजम्मु रणिहिँ सिविणंतरु दिट्ठ चारु समएण सलक्खणु गुणनिहाणु पर को विन कासु वि कहइ वत्त
घत्ता -- लंजिया
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आयन्नहि हले सुहयारिया प्र सुउ जाउ न तारि अवरु कोइ निसुणेवि एउ आदिएण ifty बद्धावि वणवरिंदु तेण वि निसुप्पिणु बंभणासु जय महविहे भवणु एवि धणदेउ नाम जणणेण दिन्नु उसव्वहँ मणि प्राणंदु जेण तुम्हीँ कुलि संजणियतुट्ठि इय भासिवि पुत्तहो पट्टबंधु
३. १ सेणुज्जेदि ।
सवयंसिहे गुज्भु न रक्खियउ । तामेकहिँ दिणि पवलिहे बाहिरि श्रक्खियउ || ३॥
चितियफलु मिच्छादेव देति । लिसि वत्थु उन्नइहिँ नेइ । आराहहि भक्ति प्ररुहदेउ । सग्गायउ सुरवरु गब्भि तुज्भु । दिवसम्म भद्दि पुनोययम्मि | रूवेण परज्जियमयरकेउ । गय वणिवहु मुणि पणवेवि हम्मु । सत्तर्म दिने हुउ गब्भावयारु । सुउ जाउ तीव्र तेएण भाणु । वाराविउ उच्छउ लोयजुत्त ।
घत्ता
- पणवेप्पिणु विणयंधरु साहु विहूयरउ | बहुसामंतहिँ सहियउ हुउ वणिवइ विरउ ॥४॥
[ ४६१
गोसामिणी अम्हारिया |
पर प्रज्जवि जणु जाणइ न कोइ । निस्सेण सोमसम्म दिएण । हुउ तुज्झ तणउ कुलकुमुयचंदु | तूसिवि सउ गामहँ दिण्णु तासु । aणारविंदु तणयहो निएवि । मग्गणजणाण दालिदु छिन्नु । बाहिरिउ सुकोसलु सो ज्जि तेण । अज्जप्पहूइ पुहईससेट्ठि । काऊण खमाविउ सयणबंधु ।
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