Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५१८ ]
सिरिचंदविरइयड
घत्ता - एत्त हे पुरे साकेन विरहवसे भिज्जंती | अच्छइ कमला निच्च रमणमग्गु जोयंती ॥ ११ ॥
१२
एक्aहिँ दिम्मि दुक्कियकयं तु इंतूण मुणिंदु मणोहिराम निसुणेवि वत्त दुन्नयविप्रोउ कमला विजाप्रवि सुणेवि धम्मु भयवंत चिरावइ काइँ नाहु निसुणेवि एउ गंभीरवाणि उज्जेणिनयर प्रमुणंतु भेउ भुंजंतु भोय कुलिसोयरी प्र
धत्ता - प्रयन्नेवि कमला किं इह परभवे
ता मुणिमुहाउनीसरिय वाय तं कह प्रयन्नह सोमसम्मु कासविहे पिउ पयसुहयरी हे एक्का वेयपढज्जएहिँ सहिएण तेण पुरबहिगएण ताणज्जियाउ वे भत्तियाउ उवासु विहिउ विवरीउ धम्मु थेरो प्रथेरि तरुणहो विथेरि
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पुणु
माय
१३
अवरु वि एव विहु बहुपया रु गय हो तिन्निवि जण करेवि तेत्थु जे वसंतसेणाहि तणय नामें वसंततिलया पसिद्ध सिहिभूइ सोमभूई विवेवि १३. १ पुच्छेवि ।
घत्ता - जइ विहि वुड्ढहो वुड्ढ
परजम्मे बप्पु इह जम्मे माय । नामेण विष्णु पालियछकम्मु । होतउ गुणि उज्जेणीपुरीहे । सिहिभूइसोमभूइहिँ सुएहिँ । जइजुयलु दिट्ठ दुन्नय रएण । पुज्जेवि पासु पडंतियाउ । सट्टा रहो रउ सिद्धिकम्मु । पेच्छह संजोइय जेण नारि । बुज्भेवि संजोयंतउ ।
तरुणहो तरुणि निरुत्तु तो भल्लारउ होंत ।। १३ ।।
१४
[ ५१ ११. ६
मुणिगुत्तु नामु विहरंतु संतु । थिउ उववणम्मि कमणीयनामे । गउवंदणहत्ति भव्वलोउ । पुच्छेवि पियवत्त विमुक्कछ । किं नावइ नाणागुणसणाहु | सुण सुयणु पयासइ परमनाणि । तुह वरु वसंततिलय समेउ । अच्छइ सुहेण सगमायरी |
मुणि भणिउ भडारा ।
सा संदेहनिवारा ।। १२ ।।
उवासु निमिणगोत्ताबयारु । कालंतरेण बंभणु मरेवि । पणियंगणाहि हुउ जणियपणय । सोहग्गरूव संपयसमिद्ध ।
सह मुय हुय त उयरम्मि एवि ।
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