Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 651
________________ ५१६ ] इह सव्वदीवसाय पहले नामेण सयंभूरमणे पीणु होत दीहतें दससयाइँ अड्ढाइय जोयणसय विसालु सो छम्मासावहि जाम चरइ ग्रहनिसु श्राहारनिमित्तु तासु वेणु कच्छव मच्छ भेय एक्कदुतिकोस चउकोसमेत्त पइसरियवि खंतहो उव्वरंति ते जंत निएप्पिणु सालिसित्थु चितइ असंतु निब्बुद्धि एहु चितवंतु ग्रहनि मरेवि इरु वि जीव हो वेरेण पाउ दोन्नि वि तेत्तीस समुद्द जाम फलरसगिद्धी अलद्धसरणु भोणत्या पायसेण हु रयणीयरु रयणायरंते एप्पिणु खलेण तम्महमिसेण सेवि समुद्दे सहुँ परियणेण घत्ता - जइ महु एत्तियमेत्तु ता एक्कु वि परमत्थु Jain Education International सिरिचंद बिरइयउ इ गहियकवउ समभावसहिउ संसारु प्रणत्यकारि धो ७. १. छम्मास साहिवु निद्द | ८. १ खवय । ८ ह रयणाय रम्मि सव्वहुँ महले । तिमियाइ तिमिगिलु नाम मीणु । जोयणहँ पंच तुंगिमइँ ताइँ । वारह जोयण भउहंतरालु । छम्मासार्वाहि ग्रह निद्द करइ । अच्छंत हो निव्वाइयमुहासु । पइति वयणे अवर वि प्रणेय । जे जलयर जलयर पुट्ठमत्त । दंतंतरेहिँ नीसरेवि जंति । नामेण मच्छु तर्हा मलु सुइत्थु । निल्लक्खणु सु एवड्डदेहु | घत्ता - एउ वियाणवि सव्व' दिढ दिहिभावण भावहि । भोयणु चिंतंतु दुक्ख परंपर मुहवउ विहि विरयंतउ । जीवु जियंतु न जंतउ ।। ७ ।। [ ५१. ७.३ तमतमप दुक्किउ करेवि । श्रवज्जेवि नारउ तहिँ जे जाउ । थिय दूसह दुक्ख सहंत ताम । पत्तउ चक्की वि सुभोमु मरणु । मारिउ सूयारु डहेवि तेण । सुमरेष्पिणु चिरवित्तंतु चित्ते । रंजेपिणु राणउ फलरसेण । मारिउ मिच्छत्तहो नेवि तेण । २ ।। एवं कवयाहियारो समत्तो ॥ For Private & Personal Use Only पावहि ।। ८ ।। ५ १० १५ ५ भावह प्रणुपेहर दोसरहिउ । जहिँ जणणि वि बहिणि वि होइ नारि । १० www.jainelibrary.org

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