Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५१४ ]
सिरिचंदविरइयउ
[५१. २. १३
घत्ता-तेण भणिउ सब्वण्हु सिद्ध साहु देवय पुरु।।
अप्पउँ सक्खि करेवि निच्छउ लइउ न वक्करु ॥ २ ॥
तं पच्चक्खाणु पसन्न वाट
मरणे वि न भंजमि सच्चु मात्र । निसुणेवि एउ चिंतापवन्न
पिय मायरि होएप्पिणु विसन्न । अत्थमिण सूर तण्हादुहाहिँ
पीडि उ कुमारु दावियदुहाहिँ। संजाउ डाहु सोसिउ सरीरु
मज्जायहो तो वि न चलइ धीरु । दाहोवयारु कीरइ समग्गु
पर तो वि निरारिउ तवइ अंगु। ५ दाविउ रवि बाहिरि करवि भेउ
पइसारिउ जालिगवक्खि तेउ । जणणी जणेरें भणिउ बप्प
रवि उइउ नियच्छहि दिढवियप्प । उठुट्टि वच्छ पूरिय पइज्ज
लइ देउ नमसहि पियहि पेज्ज । पभणइ कुमारु पयईए सूरु
अज्जवि न ताय उग्गमइ सूरु । वेयारहि किं मइँ जाणमाणु
कहिँ अद्धरत्तसमयम्मि भाणु । १० अम्हइँ जणेर खत्तियकुमार
महिमाणिय कुलगुणकित्तिसार । घत्ता-नासिज्जइ संगार्म जं लेप्पिणु वउ भज्जइ ।
आयहिँ विहि मि कमेहिँ सुट्ठ लोग लज्जिज्जइ ।। ३ ।।
जइ जियमि विहाणा ता पवित्ति इय भर्णवि पवित्ति परमदेउ प्रगणंतु महंतु सरीरडाहु जणणेण निएप्पिणु तासु गाहु गणिणा पउत्तु उग्गमिउ भाणु मज्झन्नसमउ वट्ट इ पवित्तु पूरिय पइज्ज निट्ठाहजुत्त वा तेण पणामियमत्थएण मइँ जाणिउ तुम्हहिँ होतएहिँ साहेसमि पच्चेल्लिउ रउद्दे इय भणेवि होवि संथारसाहु मुउ गउँ कुमारु पंचमउ सग्गु ४. १ सिक्खानिमितु ।
इयरहँ आहारहो महु निवित्ति । झायंतु चित्ते वड्डियविवेउ। जलमज्झ नाइँ थिउ दिहिसणाहु । हक्कारिवि निय रयणिहिँ जे साहु । सिरिपाल पलोयहि हुउ विहाणु। ५ अम्हे वि पाय भिक्खानिमित्तु । लइ उट्ठहि करि पारणउ पुत्त । गुरु भणिउ कयंजलिहत्थएण। परलोउ कुबुद्धिकयंतएहिँ। पाडह मइँ तोलेवि भवसमुद्दे । १० दूसहु सहिऊण सरीरडाहु । पर तो वि न पच्चक्खाणु भग्गु ।
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