Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५१२ ] सिरिचंदविरइयत
[ ५०. १८.३पहुणा समउ सो वि तत्थायउ
मुणि निएवि संजायकसायउ । चिंता एहु सो दुन्नयगारउ ।
मारिउ जेण सामि अम्हारउ। लइउ रज्जु पुरु देसु रवन्नउ
देसचाउ एणम्हहँ दिन्नउ । ५ एवहिं दुज्जणु रज्जु मुएप्पिणु
पेच्छह थिउ खवणउ होएप्पिणु । जं भावइ तं होउ निरुत्तउ
कहिँ महु प्रज्जु जाइ जीवंतउ । इय चितेवि थिउ मोणु करेप्पिणु
ता पुहईवइ धम्मु सुणेप्पिणु । पंच वि सय सवणहँ पुज्जेप्पिणु
गउ निलयहो नवयारु करेप्पिणु । गत नरिंदे हुए सूरत्थमण
संज्झासमण रयणिआगमणए। १० सयल वि रिसि करिसें पूरावेवि
गउ हयासु सो सिहि लावावेवि । तारिसु तं उवसग्गु सहेप्पिणु
सहुँ सीसहि समाहि पावेप्पिणु । धीरधीरु गुरुगुणहिँ गुरुक्कउ
गउ सव्वट्ठहो मुणि चाणक्कउ । धत्ता-पावक्खयगारी भव्वपियारी अच्छइ पच्छिम तो पुरहो।
अज्जवि रिसिसंघे सुयणसलग्घे वंदिज्जइ निसिहीय तहो ॥१८॥ १५
तह उसहसेणु संघे समेउ
वसहीण पलीवित पहयखेउ । डझंतु वि निच्चलु नं गिरिंदु
मुणि मरेवि समाहिए हुउ सुरिंदु । एत्थत्थि दक्खिणावहे गुणालु
अंधाण देसि पट्टणु कुणालु । तहिँ पुहईवइ वइसवणनामु
तहो मंति रिद्धिमिच्छत्तु नामु । एक्कहिँ दिणे दूरुज्झियपमाउ
रिसि उसहसेणु नामेण पाउ । ५ गउ वंदणहत्तिए तासु राउ
किउ मंतिहिँ असहंतेण वाउ । संघाहिवेण जिउ दुट्ठभाउ
अच्चंत विलक्खउ सेण जाउ । एप्पिणु पज्जालिय वसहि रत्ति
मुउ मुणि मुएवि रुद्दट्टतत्ति । घत्ता-सहुँ सीसहिँ धीरउ दड्डसरीरउ सिरिचंदुज्जलदेहपहु ।
सग्गम्मि सयारण सुहसयसारण उसहसेणु हुउ देवपहु ।।१९॥ १० विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले प्रत्थसंदोहसाले ।। भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिनतोसे ।।
मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते पंतपयदसंजुत्ते । पन्नासमो समत्तो संधी कवचाहियारो यं ।।
॥ संधि ५० ॥
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