Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 650
________________ [ ५१५ ५१. ७. २ ] कहकोसु __ घत्ता-तुहुँ वि तेम थिर थाहि पच्चक्खाणु म भंजहि । रयणत्तउ भावेवि तुहुँ अणंतु अणुहुँजहि ॥ ४ ।। पुरिसा आहारनिमित्तु एत्थ अहिमाणि पसिद्ध वि गुणि समत्थ । कुलजाय वि दुक्कम्मइँ कुणंति लज्जति ण उच्छिट्ठाइँ खंति । देसम्मि पसिद्धए दक्खिणभिम पुरि किंसु डणे सुत्थियजणम्मि । पहु विजयाइच्चु जियारिविंदु तहो नम्मवाइ नामें वणिंदु । सावउ विसुद्धसम्मत्तवंतु गुणवंतु वसंघरिघरिणिवंतु । तहो तहिँ कयाइ दुब्भिक्खि जाए भुक्खा कयत्थिy जणणिकाए। मज्झन्नसमग्र वंदेवि देउ जेमंतो सुहिसयणहिँ समेउ । नरु एक्कु जुवाणउ गयउत्तु लक्खणगुणजोव्वणरूवजुत्तु । लहु एवि छुहावससमियगत्त लग्गउ भायणमुएवि सत्तु । वारंतहो सेट्ठिहें कवलु तेण उच्छिट्ठहो भरिउ मरंतएण। १० घत्ता-भणिउ वणिदें भद्द थिरु हो करक्कम धोवि । जेमहि सहुँ अम्हेहिँ अह एककल्लउ होप्रवि ।। ५ ।। अच्चर्य वि सुणेवि वणिंदवाय ता पक्खाले प्पिणु हत्थपाय । सहसत्ति भिन्न भायणे बइठ्ठ भुंजेवि जहिच्छइ लद्धचेछु । सहुँ सेट्ठे संभासण करेवि तंबोलु लेवि बहि नीसरेवि । हा हा विरुयउ किउ मइँ भणेवि सो पडिउ उयरु छुरियन हणेवि । सावण सुणेप्पिणु गंपि वुत्तु भो पुरिस काइँ किउ इउ अजुत्तु। ५ वलि किउ हउँ तेण भणिउ वणिंदु भविखउ उच्छि?उ जेण निंदु । कि दुज्जसवंतें जीविएण निक्किठ्ठ वियारिउ उयरु तेण । इय भर्णवि समाहिए करवि कालु वणिवयणें मेल्लेवि मोहजालु । सोहम्मसग्गे वढियविवेउ संजायउ सुरवरु तरणितेउ । घत्ता-न गणइ छप्पाछेप्पु भक्खाभक्खु न भुक्खिउ । विणु आहारे जीवु सव्वपयारहिँ दुक्खिउ ।। ६ ।। आहारगिद्धि दुग्गइहो नेइ आहारहे उ दुक्किउ करेवि ५. १ उक्किट्ठाई। जीवहीं दूसहदुक्खाइँ देइ । गउ सालिसित्थु नरयहो मरेवि । २ होहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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