Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
५१. ११. ८ ] कहको
[ ५१७ धणदेवहो तहिँ जे भवम्मि ताउ
पेच्छह संजायउ पिययमाउ। उज्जेणिहे गुणसोहग्गनिलय
वेसा नामेण वसंततिलय । होती असंखदविणेसरासु
सत्ताण सुदत्तवणीसरासु। कालंतरेण गुरुहार जाय
बहुवाहिवसेण विरूवकाय । परिहरिय वणिंदें हुउ विराउ
अहवा विरूवे कहो होइ भाउ । समएण ताण सिसुजुयलु जाउ
दळूण भणिउ इउ खयहो जाउ । घत्ता-पोट्ठि ठिएण जे एण भोयविग्घु पाविढें ।
किउ महु वाहि सुएण गहियविवज्जियइढें ॥ ९ ॥ १०
१०
इय भणेवि तणय दक्खिणदिसाप
घल्लाविय निम्विन्नाट ताए। तहिँ कालि पयागपुराउ सत्थु
पावासिउ एप्पिणु पउरु तित्थु । नामेण सुकेऊ जणमणिट्ठ
सा बाली सत्थहिवेण दिट्ठ । प्राणेवि पयत्तें पिययमाहे
अप्पिय नामेण मणोरमाहे । ताए वि ताहे कमल त्ति नामु
किउ वड्ढारेवि मणोहिरामु। रूसेवि तस्स तणो वि ताप
घल्लाविउ णयरुत्तरदिसाग । ता तहिँ साकेयहो सत्थवाहु
प्रायउ सुभद्द, सुव्वयह नाहु । मावासिउ सहुँ सत्थेण तेण
सो दिठ्ठ बालु बाहिर गएण । फालियण रयणकंवलहो नाउ
निच्छउ न एहु अविसिट्ठजाउ । तुह तणउ एहु पालहि भणेवि
नियपियहि समप्पिउ भवणु नेवि । १० घत्ता-ताप वि पियवयणण पुत्तत्थिणि निहालिउ ।
लइउ निययपुत्तो व्व सव्वपयारहिँ पालिउ ।। १० ॥
११
धणदेवदिसिह संपत्तु जेण गय नियनियनिलयहां वे वि सत्थ अन्नोन्नु ताहिँ सत्थाहिवेहिँ कमला लएवि धणदेउ घरहो तहिँ भोयासत्तु समेउ तीन वाणिज्जनिमित्तु कयाणुराउ तहिँ वेसा वेसायणपहाण पासत्तउ रंजियजण मणाण
धणदेउ नामु किउ तासु तेण । कालेण समाया पुणु वि तत्थ । किउ विहिं मि विवाहविहाणु तेहिं । गउ सहुँ सुहीहिँ साकेयपुरहो । अच्छेवि सुइरु सिंधुरगई। उज्जेणि ससत्थु कयाइ आउ । पेच्छेवि वसंततिलयाहिहाण । थिउ तहिँ जे विलासहिँ समउ ताण।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675