Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 648
________________ संधि ५१ १ ५ धुवयं -- लेप्पिणु पच्चक्खाणु जो मरणे वि न भंजइ । सो सप्पुरिस अवस्स सोक्खपरंपर भुंजइ ॥ सहसक्खि करेष्पिणु सव्वु संघ वर मरणु मणूसहो जीवणाउ । कह निणि तासु आलसु मुबि । नामेण तलाडवि विहबसारु । सिवपडिवक्खो पुहईसरासु । मंतीसरु सावयसीलधामु । हिणि गुणवसइ मणोहिराम । सा सइ सिरिपाल कुमारमाय । अवरहि चउत्थीवासरम्मि । सियसिचाइँ परिदेवि पंगुरेवि । गय जत्थ जिणालउ पुन्नठाणु । Roag सिद्ध केवल महग्घु कियपच्चक्खाणहो भंजणाउ जें भग्गु न पच्चक्खाणु लेवि विष्णाsविस पुरु प्रत्थि चारु तहिँ सिरिमइमहएवीवरासु सुंदरमइ सल्लवईयनामु तो सिरियादेखि पसिद्धनाम नाणालंकारफुरंतकाय आसाढ हो सियपक्खत रम्मि सहुँ परियण भोयणु करेवि गुरुप हुँ पंचमिविहाणु Jain Education International घत्ता - भामरि देवि तिवार पुज्जेवि देउ थुणेपिणु । गुरुभत्ति वसुपालु सूरि ससंघु नवेष्पिणु ॥ १ ॥ पंचमिवबासह सविणयाप्र गुरुणा विसक्खि जिणु मुणि करेवि पडिगाहियपंचमिवयपइज्ज जो पंचमी पइँ भव्वमहिउ प्रायन्निवि एउ हतिया प्र एवं होउत्ति पउत्तु पुत्त इय भासिवि दुत्थियदुक्खहरहो मज्भन्नसमग्र पंचमिहे पुत्तु तेत्तर कल्ल भोक्खहेउ ताममा भोयणु करेमि जणी वत्तु जणणियपणय ३३ ܕ For Private & Personal Use Only १५ ५ ता मग्गिउ पच्चक्खाणु ताम्र । दिन्नउ चउविहु विसमुच्चरेवि । सिरिपालकुमारें भणिय इज्ज । सो मइँ विमान उववासु गहिउ । तहोता नियम प्रमुणंतिया । किउ चारु सलक्खण विणयजुत्त । गय मुण पणवेपिणु सुयणु घरहो । लइ प्रावहि जेमहि ताम्र वृत्तु । उववासु लइउ मइँ पइँ समेउ । गुरुसक्खि लइउ वउ परिहरेमि । तं वक्करेण मइँ भणिउ तणय ! १० www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675