Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४६२ ]
सिरिखंबविरायउ
[ ४६. ५. १
पव्वइश नाहे गयवरगईउ
जयवइ मुएवि सुंदरमईउ । भज्जाउ असेसउ अज्जियाउ
जायाउ जयत्तयपुज्जियाउ । जयवइ भत्तारहो उवरि रोसु
चिय लेवि निरंतरु देइ दोसु । धाईउ पंच पुत्तहो निमित्तु
धरियाउ ताश दाऊण वित्तु । सुव्वय विसुद्ध पय थन्नु देइ
नंदा खेलावइ संथवेइ । सुमई भुंजावइ हवइ लच्छि
मंडइ घणमाला पंकयच्छि । एयाहिँ निच्चु पालिज्जमाणु
कालेण पढिउ जायउ जुवाणु । बत्तीस नराहिवपुत्तियाउ
परिणाविउ कुलगुणजुत्तियाउ । किउ जाणएण आएसु एहु
मुणि निवि लएसइ तउ सुमेहु । निसुणेवि एउ दूमियमईए
वारिउ घरि साहुपवेसु तीन। १० घत्ता--धणदेउ वि मायाण गुणनिहि संचरइ ।
अच्छइ विविहविणोयहिँ घरहो न नीसरइ ।।५।।
सुपइट्ठसव्वभद्दाइयाहँ
पासायहँ कम्मविराइयाहँ। चउसट्टिहिँ मझ मणोहिराम
एक्कहिँ दिणि पुहईसारनामे । सहुँ धाइहिँ जणणि परियणेण
सहुँ जुवइहिँ रंजियजणमणेण। . मज्झन्नसमा अच्छंतएण
पुरु रयणगवक्खि नियंतएण । कयमासोवासु विसुद्धलेसु
तवसिरिवरु अद्वितयावसेसु । ५ चरियहि नियघरि पइसंतु संतु
आलोइवि मुणि दुक्कियकयंतु । को एहु कलागुणकोसलेण
पुच्छिय नियमाय सुकोसलेण । ता तं निएवि गव्वियमई
नंदणहो पयासिउ जयमईए। निक्कप्पडभोयणु खीणदेहु
कुलमंडण को वि अणाहु एहु । सुहिसयणविवज्जिउ पुन्नहीणु
भिक्खत्थिउ घरि घरि भमइ दीणु । १० घत्ता-आयनेवि सुकोसलु सुंदरमइ चवइ ।
__ निच्छउ एउ कयाइ न मायरि संभवइ ।।६।।
सत्थियनंदावत्ताइयाई जारिसइँ अस्स दीसंति का १ तारिस इं प्रणाहु न होइ काए।
.. विविहइँ लक्खणइँ विराइयाइँ। तारिसइँ न होई प्रणाहकार ।
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