Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४७. १६. ५ ],
कहको इय भासेवि दिन्नपयाहियहिं
जयकारिउ सो सव्वहिँ जणहिं । लहुप्रो वि हु सव्वहँ गरुउ हुउः .. पावइ न किं नु जो गुणहिँ जुङ । एत्तहे उज्जेणिहे दिन्नदुहे
पुणरवि संजाय सुहिवखे सुहे। ५ विणिवाहिवि संघु संघतिलउ
प्रागउ विसाहगणि गुणनिलउ ।.. जाणेवि मायाविय चोज्जकरी
थिर करवि पइज्जा सा नयरी। लहुभद्दबाहु साहू वि तों
विहरंतु तेहिँ सहुँ तत्थ गयो । घत्ता-एक्कहिँ मिलिय सव्व आणंदिय भद्दबाहुनिसिहिय अहिणंदिय ।
___ तेत्थु जे थिय सुहेण बहु वासर पुणु अनेत्तहिँ गय परमेसर ॥१७॥ १०
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एत्तहे ते सम्मइमग्गचुया संपत्त कयाइ भमंत तहिं तहिँ बप्परायरायहो तणिया सा साविय सुयणु ताहँ तणिया एक्कहिँ दिणम्मि मज्झन्नभरे ते पइसरंत विभियमइणा हले नउ परिहिउ नउ नग्गतणु अन्न हिँ दिणे हक्कारेवि भणिया लइ अद्धप्फालिय परिहरह नग्गत्तणु तेहिँ न ईहियउ उप्परे किउ कंबलिपंगरणु सामलिसुएण तत्तो विहिउ घत्ता-अवरु वि कोसंबिहे हयधीरें
तो वि न सलिलघडा आदन्ना
कालें पासंडिय पउर हुया । सोरट्टरट्टे पुरु वलहि जहिं । महएवि महासइ सामिणिया । चाएणाणंदिय जणभणिया। भिक्खहिँ महएविहे तणण घरे। ५ पिय भणिय पलोइवि भूवइणा । सुंदरु न तुहारउ तवसियणु । फुडु एह न वित्ति सुहावणिया । नग्गत्तणु अह परिहणु करह । सयलेहिँ वि पंजलु परिहियउ । १० तइयहुँ हुउ सेयभिक्खुचरणु । जप्पुलियसंघु मूढहिँ महिउ ।
वूढा वड्डिएण नइपूरें। धीरा आराहण पावन्ना ।।१८।।
बत्तीस वणीस पसन्नमुहा सावय जियसंसय भावभडा एक्कहिँ दिणे तेहिँ नियाउगई भासिउ भयवंतें सत्त दिणा जमुणाणइतर्ड सज्झाणरया १७. १ जोकारिउ।
गन्भेसर इंददत्तपमुहा। होता कोसंबीपुर पयडा । आउच्छिउ केवलिणाणि जई। हुय जइ मुणेवि निम्विन्नमणा । पाउग्गमरणे थिय पहयरया । १८. १ ललियघडा।
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