Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
संधि ४६
१
धुवयं - पणवेप्पणु तिहुयणगुरु रंजियविउससह । ग्राहासमि गिरिधीरहो विज्जुच्चरहो कह ॥
पोमरहहो वंसे सुमणोहरे होउ प्रासि एत्थ विक्खायउ
निरुवमरूव तासु पाडलगइ जमदंडु व जमदंडपाणउ विज्जुचवलु विज्जुच्चरसन्न उ चोरवि चोरिए परधणसंचउ सो निसि निच्चमेव नयरंतरे भिहितमक्खिय सयवेढिउ
निवहो महंत चित पेक्खेप्पिणु गंपि तेण सव्वत्थ गविट्ठउ सत्तमदि मईए संभाविउ तेण वि तत्थ तलारहो केरउ पुणु वि विराणउ पयडिउ तक्खणे अवरु वि इंदजालु पयडेप्पणु
Jain Education International
घत्ता---एक्कहिँ दियहे विहावरिहे राउलु पइसेप्पिणु । देवदिन्नु मोहेण गउ सो हारु हरेप्पिणु || १ ||
२
वाम रहाहहाणु मिहिलापुरे । नं सयमेव सक्कु सग्गायउ । बंधुमई महएवि महासइ । तलवरु तलवरविज्जवियाणउ । मंततंतविज्जासंपुन्नउ । होत तेत्थ वि पउरपवंचउ । भमइ रमइ दिणे सुन्नहरंतरे । प्रच्छ धुत्तु हवेष्पिण कोढिउ ।
गुलियंजणविज्जासामत्थउ
कवि पवंचु मुणेवि पक्खिर जणु जंप प्रणा संताविउ
घत्ता - कोदिउ हउँ भिक्खारिउ पहु देसंतरिउ । निच्छउ होमि न तक्करु निरवराहु धरिउ ॥२॥
गउ प्रारक्खिउ पय पणवेष्पिणु । [ तो वि न हारचोरु कहिँ दिट्ठउ ] । पुव्वत्तउ नरु नेप्पिणु दाविउ । किउ विज्जा रूउ विवरेरउ । देवविमाणागमणु नहंगणे । भणिउ नराहिउ कर जोडेप्पिणु ।
५
विरयइ एहु प्रणेयावत्थउ । चाहइ मइँ मारहूँ आरक्खिउ । पहिउ तलारें हा माराविउ ।
५
For Private & Personal Use Only
१०
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675