Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४६२ ]
इय जाणेवि सुयणु णत्थजोउ पजावि पहुणा इण भणेवि पुणु किउयपेरणविणोउ पहईसरेण तारिस असे सु ता किंचि विसरुहियघायरंधु अन्नोन्नु सिणेहालाव हूय सो भाउ आइ नामेण दिवसु
तह प्रभयघोसु छिन्नंधिपाणि
परिहरहि किसोयरि बंधुसोउ ।
पर तो वि न मेल्लइ सोउ देवि । तेण वि न ताहि किउ दुहविप्रोउ । कावि पुणु वेसकरु वेसु । परिप्रोसिय सा मनेवि बंधु । संजाय सुहिणि रायहो वहूय ।
उतप्पहूइ छणु जणिय हरिसु ।
घत्ता -- एवंविह कह कहिय मइँ सामिकत्तिगेयहो जिणभासिय । अन्नारिस अन्नाणियहिँ विरएप्पिणु लोयहो उवसिय ||२१||
२२
उप्पन्ननाणु
एत्थत्थि चारु
तहिँ भयघोसु
एक्केहिँ ते
तल्लम्मि ल कच्छउ एवि
आमुक्कु चक्कु सो मरेवि पुत्तु हुउ चंडवे
कालेण राउ
विहरेवि प्राउ वीरासणेण
चक्केण पाणि
सिरिचंवबिरइयउ
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[ ४८.२१.५
घत्ता -निच्चलमणु वेयण सहेवि उप्पाएप्पिणु केवलु नाणउ । उज्जलु सिरिचंदु सुरिंदथुउ गउ परमेसरु सासयठाणउ ||२२|| विविहरसविसाले णेयको ऊहलाले । ललियवयणमाले प्रत्थसंदोहसाले । भुवणविदिनामे सव्वदोसोवसामे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिनतोसे ||
मुरिण सिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते गंतपयदसंजुत्ते ।
अट्ठा हिउ सम्मत्तो चालीसमश्रो इमो संधी ॥
|| संधि ४८ ॥
मुणि मंदरधीरु विमुक्कदो । वेण सहेवि गुणरयणखाणि । कम्मइँ हणेवि गउ परमठाणु । काकंदिनामु पुरु चउदुवारु । पहु नायवंतु जणजणियतोसु । army वणभूमिहि निग्गएण | चउसु विपसुलवंतु बद्धु । सम्मुहउ एंतु धीवरु निएवि । कत्तरियउ कुम्महो कमचउक्कु । तासु जे चिरसंचियवेरजुत्तु । नामें अभयमइहे उग्गतेउ । सिगहण निएप्पिणु सवणु जाउ । पुणरवि तहिँ उववर्ण वीयराउ । पेच्छेवि थिउ चिरवइरेण तेण । पायविवियि पिसुणेण हाणि । १५
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